राष्ट्र की सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य की पूर्ति के लिए श्रीराम जन्मभूमि को मुक्ति भारतीय चेतना की अभीप्सा थी और इसकी पूर्ति के सूत्रधार थे श्रद्धेय अशोक सिंहलजी। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के पर्याय के रूप में अशोकजी की सामाजिक पहचान स्थापित है, लेकिन अशोकजी हिंदू समाज और भारत की लोक-चेतना से जुड़े हुए उन सभी विषयों पर विचार और कार्य के लिए कटिबद्ध रहे, जो राष्ट्र के अभ्युदय और सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के लिए आवश्यक थे।
इस आंदोलन के साथ ही अशोकजी ने हिंदू समाज के संगठन, शिक्षा, संस्कार, समृद्धि, आस्था और विश्वास के लिए आवश्यक उन सभी विषयों को अपने कार्य का केंद्रबिंदु बनाया। गौ-रक्षा, गंगा-रक्षा,... See more
राष्ट्र की सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लक्ष्य की पूर्ति के लिए श्रीराम जन्मभूमि को मुक्ति भारतीय चेतना की अभीप्सा थी और इसकी पूर्ति के सूत्रधार थे श्रद्धेय अशोक सिंहलजी। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के पर्याय के रूप में अशोकजी की सामाजिक पहचान स्थापित है, लेकिन अशोकजी हिंदू समाज और भारत की लोक-चेतना से जुड़े हुए उन सभी विषयों पर विचार और कार्य के लिए कटिबद्ध रहे, जो राष्ट्र के अभ्युदय और सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के लिए आवश्यक थे।
इस आंदोलन के साथ ही अशोकजी ने हिंदू समाज के संगठन, शिक्षा, संस्कार, समृद्धि, आस्था और विश्वास के लिए आवश्यक उन सभी विषयों को अपने कार्य का केंद्रबिंदु बनाया। गौ-रक्षा, गंगा-रक्षा, अस्पृश्यता को दूर कर सामाजिक समरसता, वनवासी-गिरिवासी समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य, धार्मिक स्थलों एवं परंपराओं की पुनर्प्रतिष्ठा व संरक्षण, भारतीय ज्ञान परंपरा का विकास, वेद विद्या का प्रचार- प्रसार आदि अनेक क्षेत्रों में उनके द्वारा लोगों को प्रेरित किया गया।
श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की प्रखरता के प्रकाश-पुंज से आलोकित होने के कारण अशोकजी के विविध क्षेत्रों के कार्यों से जनमानस उतना परिचित नहीं है, जितना होना चाहिए। हिंदू हृदय सम्राट् अशोक सिंहल के त्याग व संघर्ष तथा समर्पित राष्ट्रजीवन की यशोगाथा है यह कृति, जो उनके विचार, कर्तृत्व, अंतर्दृष्टि और संकल्पशक्ति का जयघोष करती है।