भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की तेजस्वी नायिका झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का यशोगान बारम्बार हुआ है और होता रहेगा। तथापि सुधी साहित्यकार डॉ. सत्येन्द्र शर्मा ने जिस गहन, अध्ययन-मनन और चिन्तन से झाँसी की रानी के मनोभाव, दृढ़ संकल्प, संघर्ष और उत्कर्ष को जाना समझा और सुभद्राकुमारी चौहान की प्रसिद्ध रचना के सन्दर्भ में उसका तथ्यपूर्ण विश्लेषण किया है, वह समान रूप से हिन्दी साहित्य और इतिहास की महत्वपूर्ण निधि बन गया है। भाषा, भाव, शैली और कथ्य हर दृष्टि से लेखक ने झाँसी की रानी के व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ न्याय किया है। उल्लेखनीय यह भी है कि समूचे लेखन में कहीं भी अतिरंजना या अतिशयोक्ति नहीं है। लोक में ... See more
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की तेजस्वी नायिका झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का यशोगान बारम्बार हुआ है और होता रहेगा। तथापि सुधी साहित्यकार डॉ. सत्येन्द्र शर्मा ने जिस गहन, अध्ययन-मनन और चिन्तन से झाँसी की रानी के मनोभाव, दृढ़ संकल्प, संघर्ष और उत्कर्ष को जाना समझा और सुभद्राकुमारी चौहान की प्रसिद्ध रचना के सन्दर्भ में उसका तथ्यपूर्ण विश्लेषण किया है, वह समान रूप से हिन्दी साहित्य और इतिहास की महत्वपूर्ण निधि बन गया है। भाषा, भाव, शैली और कथ्य हर दृष्टि से लेखक ने झाँसी की रानी के व्यक्तित्व और कृतित्व के साथ न्याय किया है। उल्लेखनीय यह भी है कि समूचे लेखन में कहीं भी अतिरंजना या अतिशयोक्ति नहीं है। लोक में झाँसी की रानी की व्याप्ति के साथ तादात्म्य बैठाने में भी कृतिकार का विन्यास देखते बनता है। यह इस कृति का अतिरिक्त वैशिष्ट्य है। : विजयदत्त श्रीधर (संपादक , निदेशक)