‘मेरा भरोसा है कि राजगोपाल सिंह वर्मा की सेनापति एक महान सेनानायक के जीवन संघर्ष, उसके उत्थान-पतन, प्रेम-विरह और जीवन की संध्या तक की यात्रा के अनेक अनछुए, अनचीन्हे पन्नों को खोलने का काम करेगी’ ―डॉ राकेश पाठक,क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि 18वीं सदी के किसी छोटे-से यूरोपीय देश में जन्मा एक बालक दुनिया के दूसरे छोर पर विजय का प्रतीक बन जाएगा? अगर उसका नाम ‘बेनेट द बॉयन’ हो, तो हाँ।
राजगोपाल सिंह वर्मा की पुस्तक सेनापति इसी अनूठे फ़्रांसीसी योद्धा की कहानी है। सेवॉय में जन्मे बॉयन ने कई देशों के लिए युद्ध लड़े और अंततः महाराजा महादजी सिंधिया के सेनापति बने। उन्होंने हिंदुस्तान की सबसे योग्य सेना तैयार की, जिससे �... See more
‘मेरा भरोसा है कि राजगोपाल सिंह वर्मा की सेनापति एक महान सेनानायक के जीवन संघर्ष, उसके उत्थान-पतन, प्रेम-विरह और जीवन की संध्या तक की यात्रा के अनेक अनछुए, अनचीन्हे पन्नों को खोलने का काम करेगी’ ―डॉ राकेश पाठक,क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि 18वीं सदी के किसी छोटे-से यूरोपीय देश में जन्मा एक बालक दुनिया के दूसरे छोर पर विजय का प्रतीक बन जाएगा? अगर उसका नाम ‘बेनेट द बॉयन’ हो, तो हाँ।
राजगोपाल सिंह वर्मा की पुस्तक सेनापति इसी अनूठे फ़्रांसीसी योद्धा की कहानी है। सेवॉय में जन्मे बॉयन ने कई देशों के लिए युद्ध लड़े और अंततः महाराजा महादजी सिंधिया के सेनापति बने। उन्होंने हिंदुस्तान की सबसे योग्य सेना तैयार की, जिससे महादजी दिल्ली के भाग्यविधाता बन सके।
बॉयन एक अजेय सेनानायक और उसूलों के पक्के इंसान थे। फ़्रांसीसी, आयरिश ब्रिगेड और रूसी सेना में संघर्षों के बाद, उन्होंने हिंदुस्तान का रुख़ किया। फ़्रांस लौटने पर उन्हें नेपोलियन बोनापार्ट का न्यौता मिला, लेकिन बॉयन ने हथियार छोड़ने के बाद कभी तलवार नहीं उठाई।
यह जीवनी बॉयन के सैनिक बनने से लेकर अजेय सेनापति और राजनैतिक शिखर तक दख़ल रखने की रोचक कहानी बताती है।