डॉ. भीमराव आंबेडकर को भारत में दलितों के मसीहा के रूप में देखा जाता है। सन् 1947 में उन्हें संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए गठित प्रारूपण समिति का अध्यक्ष बनाया गया। संविधान के निर्माण में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही ।
उनका जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे महू (इंदौर के निकट) में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था। वे पिता सूबेदार रामजी एवं माँ भीमाबाई शकपाल की चौदहवीं संतान थे। महार जाति का होने के कारण उन्हें 'अछूत' समझा जाता था। उनके पिता और दादा ने ब्रिटिश सेना में नौकरी की थी। तत्कालीन सरकार द्वारा सभी सैन्य - कर्मियों के बच्चों की शिक्षा हेतु अच्छे स्कूलों का प्... See more
डॉ. भीमराव आंबेडकर को भारत में दलितों के मसीहा के रूप में देखा जाता है। सन् 1947 में उन्हें संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए गठित प्रारूपण समिति का अध्यक्ष बनाया गया। संविधान के निर्माण में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही ।
उनका जन्म वर्तमान मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे महू (इंदौर के निकट) में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था। वे पिता सूबेदार रामजी एवं माँ भीमाबाई शकपाल की चौदहवीं संतान थे। महार जाति का होने के कारण उन्हें 'अछूत' समझा जाता था। उनके पिता और दादा ने ब्रिटिश सेना में नौकरी की थी। तत्कालीन सरकार द्वारा सभी सैन्य - कर्मियों के बच्चों की शिक्षा हेतु अच्छे स्कूलों का प्रबंध किया गया था। इसलिए निम्न जाति के होने के बावजूद उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हुई।
सन् 1937 में डॉ. आंबेडकर ने कोंकण क्षेत्र में महारों के सरकारी गुलाम के रूप में काम करने की 'खोती प्रथा' को समाप्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया। 1947 में भारत के स्वतंत्र होने पर उन्होंने कानून मंत्री के पद को सुशोभित किया। उन्होंने आह्वान किया, ‘छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है। '
उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए वर्ष 1990 में मरणोपरांत उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया।
प्रस्तुत है गरीब, असहाय तथा दबे कुचलों को ऊपर उठानेवाले एक सच्चे मसीहा की प्रेरणास्पद एवं पठनीय रोचक जीवनी ।