बौद्ध दर्शन से अभिप्राय उस दर्शन से है जो भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा विकसित किया गया और बाद में पूरे एशिया में इसका प्रसार हुआ। यह साधारणतया बौद्ध धर्म के रूप में जाना जाता है। प्राचीन भारत में उत्पन्न हुई यह एक गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपरा है। 'दुख से मुक्ति' बौद्ध धर्म का मुख्य ध्येय रहा है। कर्म, ध्यान एवं प्रज्ञा इसके साधन रहे हैं। तथागत बुद्ध द्वारा स्थापित किये गये विचारों की यह विश्वास प्रणाली मनुष्य के आत्मज्ञान और पीडा से मुक्ति पाने की खोज के आसपास घूमती है। इस विचारधारा के मूल में चार आर्य सत्य समाये हुए हैं, जो दुख, दुख के कारण, दुख की समाप्ति और अं�... See more
बौद्ध दर्शन से अभिप्राय उस दर्शन से है जो भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा विकसित किया गया और बाद में पूरे एशिया में इसका प्रसार हुआ। यह साधारणतया बौद्ध धर्म के रूप में जाना जाता है। प्राचीन भारत में उत्पन्न हुई यह एक गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपरा है। 'दुख से मुक्ति' बौद्ध धर्म का मुख्य ध्येय रहा है। कर्म, ध्यान एवं प्रज्ञा इसके साधन रहे हैं। तथागत बुद्ध द्वारा स्थापित किये गये विचारों की यह विश्वास प्रणाली मनुष्य के आत्मज्ञान और पीडा से मुक्ति पाने की खोज के आसपास घूमती है। इस विचारधारा के मूल में चार आर्य सत्य समाये हुए हैं, जो दुख, दुख के कारण, दुख की समाप्ति और अंत में आत्मज्ञान के मार्ग को स्वीकार करते हैं। इतना ही नहीं बुद्ध द्वारा बताया गया अष्टांगिक मार्ग मनुष्य का नैतिक जीवन और आत्म-सुधार के लिए बतौर मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
बौद्ध दर्शन करुणा, अहिंसा और सभी दुखदायक चीजों की नश्वरता का विवेचन है। दुनिया भर के लाखो लोग इस पुस्तक से प्रभावित हुए हैं। यह मनुष्य के लिए आंतरिक शांति और ज्ञानोदय की ओर एक आध्यात्मिक यात्रा की पेशकश है। प्रस्तुत पुस्तक मे बौद्ध धर्म के जानेमाने अभ्यासक महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने बौद्ध दर्शन के पाँच अध्यायों में बौद्ध दर्शन की सभी मान्यताओं पर चर्चा करके बौद्ध दर्शन को सुस्पष्ट करने का प्रयास किया हैं। बौद्ध दर्शन की जो जानकारी इसमें है वह समझने में विषय मर्मज्ञ के अलावा सामान्य पाठकों को भी कोई कठिनाई नहीं होगी।
“मैं हाशिए के समाज में पैदा हुआ हूँ। मुझे इन समुदायों के लोगों की तरक्की के लिए अपना जीवन समर्पित करना है। इसे लेकर मैंने बचपन में ही कसम खायी है। मेरी इस कसम से मुझे दूर कर देनेवाले कई तरह के लालच मेरे जीवन में आए और गए।
यदि मैं केवल निजी स्वार्थ पूर्ति का मकसद बचपन में ही तय कर लेता तो मेरे लिए किसी भी प्रतिष्ठित पद पर विराजमान होना आसान था। परंतु मैंने हाशिए के लोगों की तरक्की के मकसद से तमाम जीवन बीताने का संकल्प किया है। यह मकसद सामने रखकर मैं एक सिद्धांत का अवलंब करता आया हूँ, वह सिद्धांत यह कि किसी कार्य को अपने अंजाम तक पहुँचाने को लेकर किसी में भरपूर उत्साह मौजूद है और उस कार्य को अंजाम तक ले जाए बिना उसे चैन नहीं मिलता, ऐसे व्यक्ति द्वारा संकुचित सोच और कृति को अपनाया जाए तो वह ठीक नहीं होगा। हाशिए के लोगों के हित-अहित के मुद्दे को मौजूदा सरकार द्वारा कई दिनों से अनिर्णित रखा गया है। इसे देख मेरे दिल में कितनी पीड़ा हो रही है इसका (उपरोक्त हकीकत से) आपको अनुमान हो जाएगा।"
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर
डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर (14) अप्रैल, 1891 6 दिसंबर 1956) कानूनविद, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और समाजसुधारक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने समता के आंदोलन को प्रेरणा दी थी। उन्होंने महिला और श्रमिकों के अधिकारों की पैरवी की थी। वे ब्रिटिश भारत में श्रममंत्री, स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री, भारतीय संविधान के निर्माता और भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुज्जीवक थे।
डॉ. आंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स जैसी विश्वविख्यात शिक्षण संस्थाओं से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्राप्त की थीं। उन्होंने समाज प्रबोधन के लिए अखबार चलाए। उन्होंने दलितों के राजनीतिक अधिकार और आजादी की पैरवी की। आधुनिक भारत के निर्माण में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। सन 2012 में 'आउट लूक' पत्रिका द्वारा कराए गए 'द ग्रेटेस्ट इंडियन' सर्वे में डॉ. आंबेडकर को महानतम भारतीय के रूप में चुना गया था।
प्रस्तुत पुस्तक छात्र, शोधार्थी, ज्ञानसाधक एवं अध्येताओं के लिए प्रेरक साबित होगी, ऐसा विश्वास है।