प्राक्-ऐतिहासिक काल में आज के राजस्थान का रेगिस्तान समंदर होता था। समय के चक्र और प्रकृति के बदलने के साथ इस समंदर का पानी सूख गया और वह रेत से भर गया। रेत ही रेगिस्तान की पहचान और सच्चाई बन गई और इसी रेत की पृष्ठभूमि पर रचा गया है यह उपन्यास। इसके किरदार आदिकाल से वर्तमान के बीच आवाजाही करते हैं और अपने साथ लाते हैं अपनी-अपनी कहानियाँ। इन कहानियों को पढ़ते लगता है कि समाज में कुछ भी तो बदला नहीं। पहले की तरह ही आज भी प्रेमियों को हिंसा और अन्याय का सामना करना पड़ता है, अपने हक के लिए सत्ता के ख़िलाफ़ लोगों को विद्रोह करना पड़ता है। यह उपन्यास रेगिस्तान के जीवन के हर पक्ष को अपने में समेटता है जहाँ प्रकृति और इंस�... See more
प्राक्-ऐतिहासिक काल में आज के राजस्थान का रेगिस्तान समंदर होता था। समय के चक्र और प्रकृति के बदलने के साथ इस समंदर का पानी सूख गया और वह रेत से भर गया। रेत ही रेगिस्तान की पहचान और सच्चाई बन गई और इसी रेत की पृष्ठभूमि पर रचा गया है यह उपन्यास। इसके किरदार आदिकाल से वर्तमान के बीच आवाजाही करते हैं और अपने साथ लाते हैं अपनी-अपनी कहानियाँ। इन कहानियों को पढ़ते लगता है कि समाज में कुछ भी तो बदला नहीं। पहले की तरह ही आज भी प्रेमियों को हिंसा और अन्याय का सामना करना पड़ता है, अपने हक के लिए सत्ता के ख़िलाफ़ लोगों को विद्रोह करना पड़ता है। यह उपन्यास रेगिस्तान के जीवन के हर पक्ष को अपने में समेटता है जहाँ प्रकृति और इंसान के ताने-बाने के बदलते रूप दिखाई देते हैं।
संदीप मील का किस्सागोई का अपना अंदाज़ है जिसमें यथार्थ और कल्पना का शानदार मिश्रण है। इनके लेखन में किरदारों की निजी स्मृतियाँ इस तरह रूपांतरित होती हैं कि उनके आधार पर उस दौर के व्यापक वितान को गहराई तक समझा जा सकता है। राजनीति विज्ञान में पोस्ट डाक्टरेट, संदीप मील के विश्वविद्यालयों से खेतों तक अर्जित विविध प्रकार के अनुभव इनकी रचनाओं में दिखाई देते हैं। एक एक्टिविस्ट के रूप में जहाँ एक ओर वे जन-संघर्षों में रत रहते हैं तो दूसरी ओर कथा साहित्य में भी निरंतर सक्रिय हैं।