कहानी-संग्रह ‘सतीत्व’ सत्य पर आधारित कहानियों का एक गुलदस्ता है। ये कहानियाँ इतनी गहराई और सजीवता से लिखी गई हैं कि इन्हें पढ़ते हुए पाठकों को ऐसा महसूस होगा मानो हर पात्र उनके चारों ओर घूम रहा हो। इन कहानियों में छुपी सच्चाइयों को जानकर पाठक ख़ुद को विचारों की चपेट में पाएँगे। ये कहानियाँ उन्हें सोचने पर मजबूर कर देंगी कि किस प्रकार हमारे थोड़े से अहम और स्वार्थ की वजह से हम अपने रिश्तों और समाज को गर्त में धकेल रहे हैं। धीरे-धीरे समाज एक ऐसी खाई में गिरता जा रहा है, जिसका पट पाना नामुमकिन-सा नज़र आता है। रिश्तों में दरारें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं और सहनशक्ति समाज से पलायन हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, तला�... See more
कहानी-संग्रह ‘सतीत्व’ सत्य पर आधारित कहानियों का एक गुलदस्ता है। ये कहानियाँ इतनी गहराई और सजीवता से लिखी गई हैं कि इन्हें पढ़ते हुए पाठकों को ऐसा महसूस होगा मानो हर पात्र उनके चारों ओर घूम रहा हो। इन कहानियों में छुपी सच्चाइयों को जानकर पाठक ख़ुद को विचारों की चपेट में पाएँगे। ये कहानियाँ उन्हें सोचने पर मजबूर कर देंगी कि किस प्रकार हमारे थोड़े से अहम और स्वार्थ की वजह से हम अपने रिश्तों और समाज को गर्त में धकेल रहे हैं। धीरे-धीरे समाज एक ऐसी खाई में गिरता जा रहा है, जिसका पट पाना नामुमकिन-सा नज़र आता है। रिश्तों में दरारें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं और सहनशक्ति समाज से पलायन हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, तलाक़ और पारिवारिक विघटन अब हर-दूसरे घर की कहानी बन चुके हैं। लेखिका ने अपनी कहानियों में इन गंभीर मुद्दों को उठाने का साहस किया है। ये कहानियाँ सवाल उठाती हैं कि आख़िर हम कहाँ जा रहे हैं? क्या हम अपनी नादानियों और अहंकार की चादर ओढ़े हुए, समाज और रिश्तों को नष्ट कर रहे हैं? यह एक चेतावनी भी है और आत्म-निरीक्षण का एक अवसर भी, जिससे हम समझ सकें कि हमें अपने सामाजिक जीवन के तौर-तरीक़े को बदलने की आवश्यकता है। About the Author: शकुंतला अग्रवाल का जन्म 1962 में हरियाणा सांपला में हुआ। वर्तमान में जयपुर में निवास कर रहीं शकुंतला धार्मिक प्रवृत्ति की शिक्षित गृहिणी हैं। वो जीवन मूल्यों में विश्वास रखती हैं और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता देती हैं। कविता, पाठ, भजन, नृत्य, संगीत और राजनीति में रुचि रखने वाली शकुंतला ने श्यामलाल अग्रवाल से शादी के बाद परिवार को ही प्राथमिकता दी। सामाजिक कुरीतियों और अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में वो कभी भी संकोच नहीं करतीं। शकुंतला ‘स्टोरीमिरर’ से जुड़ी हैं। उनकी दो किताबें ‘याद बहुत आएँगे’ और ‘गुनहगार कौन’ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएँ ‘श्री देशना’, ‘सूर्योदय साहित्य मंच’ और ‘मनपसंद’ साझा-संकलन में प्रकाशित हुई हैं। उन्होंने आकाशवाणी और सोशल मीडिया पर भी अपनी कविताएँ प्रस्तुत की हैं। साहित्य के क्षेत्र में उन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं।