शारिक़ कैफ़ी (सय्यद शारिक़ हुसैन) बरेली (उत्तर प्रदेश) में 1961 में पैदा हुए। वहीं बी.एस.सी. और एम.ए. (उर्दू) तक शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता कैफ़ी विज्दानी (सय्यद रिफ़अत हुसैन) मशहूर शाइ'र थे, इस तरह शाइ'री उन्हें विरासत में हासिल हुई। उनकी ग़ज़लों का पहला मज्मूआ' 'आ'म सा रद्द-ए-अ'मल' 1989 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद, 2008 में दूसरा ग़ज़ल-संग्रह 'यहाँ तक रौशनी आती कहाँ थी' और 2010 में नज़्मों का मजमूआ' 'अपने तमाशे का टिकट' प्रकाशित हुआ। 2017 में ग़ज़ल-नज़्म की एक किताब 'खिड़की तो मैंने खोल ही ली' देवनागरी में प्रकाशित हुई। 2019 में 'देखो क्या क्या भूल गए हम' के नाम से ग़ज़लों और नज़्मों का एक संग्रह उर्दू में सामने आया।.