राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी गयी 'वोल्गा से गंगा' इस पुस्तक में ६००० ई. पू. से १९४२ तक मानव समाज के ऐतिहासिक, आर्थिक, राजनीतिक आधारों का बीस कहानियों के रूप में चित्रण किया गया है। यह कहानियाँ मानवी सभ्यता के विकास की पूरी कडी को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में सक्षम है। इस कहानी संग्रह के विषय में वे खुद ही लिखते है कि, "लेखक की एक-एक कहानी के पीछे उस युग के संबंध की वह भारी सामग्री है, जो दुनिया की कितनीही भाषाओं, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, मिट्टी, पत्थर, तांबे, पीतल, लोहे पर सांकेतिक वा लिखित साहित्य अथवा अलिखित गीतों, कहानियों, रीतिरिवाजों टोटके-टोना में पाई जाती है।" इससे स्पष्ट है कि, यह पुस्तक अपनी भूमिका में ह... See more
राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी गयी 'वोल्गा से गंगा' इस पुस्तक में ६००० ई. पू. से १९४२ तक मानव समाज के ऐतिहासिक, आर्थिक, राजनीतिक आधारों का बीस कहानियों के रूप में चित्रण किया गया है। यह कहानियाँ मानवी सभ्यता के विकास की पूरी कडी को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में सक्षम है। इस कहानी संग्रह के विषय में वे खुद ही लिखते है कि, "लेखक की एक-एक कहानी के पीछे उस युग के संबंध की वह भारी सामग्री है, जो दुनिया की कितनीही भाषाओं, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, मिट्टी, पत्थर, तांबे, पीतल, लोहे पर सांकेतिक वा लिखित साहित्य अथवा अलिखित गीतों, कहानियों, रीतिरिवाजों टोटके-टोना में पाई जाती है।" इससे स्पष्ट है कि, यह पुस्तक अपनी भूमिका में ही अपनी ऐतिहासिक महत्त्व और विशेषता को प्रकट कर देती है। इस पुस्तक में आपको अद्भुत रचना का आनंद प्राप्त हो सकता है।
बौद्ध कालीन जीवन, यवन यात्रियों के भारत आगमन की यादें इसमें अलक उठती हैं।
मध्ययुग से वर्तमान युग तक की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को व्यक्त करने वाली यह कहानियाँ हमे वर्तमान तक के सफर का एहसास दिलाती है। इन कहानियों में ऐतिहासिक प्रामाणिकता इस हद तक शामिल है कि कथा और इतिहास में अंतर कर पाना असंभव सा लगता है।
मातृसत्तात्मक समाज में स्त्री वर्चस्व और स्त्री सम्मान को व्यक्त करने वाली यह बेजोड रचना है। राहुल सांकृत्यायन ने बड़े कौशल से इस कृति में मातृसत्तात्मक समाज को पितृसत्तात्मक समाज में बदलते दिखाया है और इसके लिए उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं को आधार बनाया है।