केसरी तड़के ही अपने ख़च्चर के साथ सोनकुरिया नगर की ओर चल पड़ा, इस उम्मीद के साथ, एक दिन बख़्ते-बलंद में दरख़्शाँ होकर उसकी ज़िंदगी की सूरत-ए-हाल भी चमकेगी | इनायत वाला दिन कब आएगा, ये तो बस क़ुदरत जानती थी, लेकिन देवताल चोटी की सरहद को पार या न पार करने की कश्मकश ज़रूर थी | कभी दरकार उस पुकार की, जो ख़ुद-ब-ख़ुद रूह से उठने लगी थी - न केवल एक उम्मीद भरी ज़िंदगी की हिफ़ाज़त करे, बल्कि असालत में गर कोई मुस्तक़बिल कहीं जल रहा हो तो उसे भी महफ़ूज़ रखे | या नज़रबंदी थी, जो अफ़्सूँओं में लिपटकर इतनी ज़ोरावर हो गई कि बिना गिरेबान पकड़े ही अच्छे-अच्छों को घसीटते हुए अपने मंसूबों की ओर ले ही आती है - दिलोदिमाग़ की जुगलबंदी को पूरी तरह से नीस्त-ओ-नाबूद करके |... See more
केसरी तड़के ही अपने ख़च्चर के साथ सोनकुरिया नगर की ओर चल पड़ा, इस उम्मीद के साथ, एक दिन बख़्ते-बलंद में दरख़्शाँ होकर उसकी ज़िंदगी की सूरत-ए-हाल भी चमकेगी | इनायत वाला दिन कब आएगा, ये तो बस क़ुदरत जानती थी, लेकिन देवताल चोटी की सरहद को पार या न पार करने की कश्मकश ज़रूर थी | कभी दरकार उस पुकार की, जो ख़ुद-ब-ख़ुद रूह से उठने लगी थी - न केवल एक उम्मीद भरी ज़िंदगी की हिफ़ाज़त करे, बल्कि असालत में गर कोई मुस्तक़बिल कहीं जल रहा हो तो उसे भी महफ़ूज़ रखे | या नज़रबंदी थी, जो अफ़्सूँओं में लिपटकर इतनी ज़ोरावर हो गई कि बिना गिरेबान पकड़े ही अच्छे-अच्छों को घसीटते हुए अपने मंसूबों की ओर ले ही आती है - दिलोदिमाग़ की जुगलबंदी को पूरी तरह से नीस्त-ओ-नाबूद करके | या बख़्ते-बलंद में चमकता सच, जो यक़ीं दिला रहा था - चमकता अफ़्सूँ दफ़न हुआ और उसी के साथ दफ़न हुआ उसका पैदा किया ख़ौफ़ | जंगल से गुज़रती एक लड़के की हैरत-अंगेज़ दास्ताँ और इस दास्ताँ में चमत्कारों से लबालब करामाती रात, जहाँ ग़ालिबन सारी हदें टूटेंगी...