हिन्दी ग़ज़ल आधुनिक हिन्दी कविता की उस समृद्ध परम्परा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें उसकी अपनी भी एक लम्बी परम्परा है, जो समय के साथ अपनी अभिव्यक्ति के नए तेवर विकसित करती रही है। यह विकास आज के हिन्दी ग़ज़लकारों में भी आसानी से तलाशा जा सकता है। आज हिन्दी ग़ज़ल एक छोर पर आम-आदमी के जीवन की संवेदना-भूमि पर अवस्थित है, तो दूसरे छोर पर समाज, संस्कृति और राजनीति की अमानवीय शक्तियों के विरुद्ध डटकर प्रतिरोध भी कर रही है। यथार्थवादी चित्रणए शोषक वर्ग के प्रति घृणा तथा शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति की भावनाए विद्रोह एवं क्रांति की भावनाएनारी के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण तथा मानवतावादी भावना रोटी कपड़ा और मकान की समस्�... See more
हिन्दी ग़ज़ल आधुनिक हिन्दी कविता की उस समृद्ध परम्परा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें उसकी अपनी भी एक लम्बी परम्परा है, जो समय के साथ अपनी अभिव्यक्ति के नए तेवर विकसित करती रही है। यह विकास आज के हिन्दी ग़ज़लकारों में भी आसानी से तलाशा जा सकता है। आज हिन्दी ग़ज़ल एक छोर पर आम-आदमी के जीवन की संवेदना-भूमि पर अवस्थित है, तो दूसरे छोर पर समाज, संस्कृति और राजनीति की अमानवीय शक्तियों के विरुद्ध डटकर प्रतिरोध भी कर रही है। यथार्थवादी चित्रणए शोषक वर्ग के प्रति घृणा तथा शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति की भावनाए विद्रोह एवं क्रांति की भावनाएनारी के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण तथा मानवतावादी भावना रोटी कपड़ा और मकान की समस्या मजदूरों और किसानों की दयनीय दशा इत्यादि सर्वरूपेण इस खण्ड की रचनाओं में आम जन-मानस की भाषा में रचा गया है । ईंधन जुटा लिया गया है आग के लिए घर में नमक बचा नहीं है साग के लिए सीता तो छोड़कर के ये दुनिया है जा चुकी अब राम भी न है कोई परित्याग के लिए सारे समीकरण वो गया तोड़कर अभी कुछ भी नहीं बचा है गुणा भाग के लिए