इन कविताओं के केंद्र में वह समय है, जो स्वयं में अनुपस्थित होकर, अपने ही बाहर का ऐसा वृत्त रचता है, जिसके दायरे में वह सब कुछ सिमट आता है, जिसे ठीक आज के समय का कोई भी मनुष्य अपनी सामान्य प्रज्ञा, बोध, संवेदना, अपने दैनिक जीवन के अनुभवों और अब तक अर्जित ज्ञान-विज्ञान के माध्यम से, समझता है. लेकिन इन कविताओं में स्थगित समय के भीतर और बाहर का वह वृत्त है , जहाँ मिथक टूटते हैं, इतिहास सभ्यता की गुफाओं में दाखिल होकर नया अर्थ हासिल करता है और युवा कवि दीपक जायसवाल की इन कविताओं को पढ़ते हुए पाठक अपनी सामान्य चेतना की किसी गहरी नींद से अचानक जाग जाता है.-उदय प्रका