काव्य रचना का भाव यूँ तो बाल्यकाल से ही बीज रूप में विद्यमान था जिसके अंकुर यदा कदा मित्रों के साथ तुकबन्दियों में दिखायी दे जाते थे किन्तु किसी भी भाव में प्रगाढ़ता नहीं थी फक्कड़ स्वभाव के सादे यौवन को किसी मधुमती ने प्रथम बार स्पर्श किया और गीत के स्वर अकस्मात फूट पड़े “तुम न हो पाए मेरे संसार लेकर क्या करूँगा” विरह वेदना की टीस ने मन को ऐसा खोखला किया कि इसमें पीड़ा जमकर बैठ गई और गीतों ने अपना आकार लेना प्रारंभ कर दिया। मन के कोमल किसलय इतने नर्म हो गए कि सूर्य की हर किरण से सहम जाते और लिख लेते इस प्रकार अनवरत काव्य रचनायें विभिन्न स्वरूपों में पुष्पित पल्लवित होती रही और आज तक वे “जैसे तैसे उमर बिता ली मै�... See more
काव्य रचना का भाव यूँ तो बाल्यकाल से ही बीज रूप में विद्यमान था जिसके अंकुर यदा कदा मित्रों के साथ तुकबन्दियों में दिखायी दे जाते थे किन्तु किसी भी भाव में प्रगाढ़ता नहीं थी फक्कड़ स्वभाव के सादे यौवन को किसी मधुमती ने प्रथम बार स्पर्श किया और गीत के स्वर अकस्मात फूट पड़े “तुम न हो पाए मेरे संसार लेकर क्या करूँगा” विरह वेदना की टीस ने मन को ऐसा खोखला किया कि इसमें पीड़ा जमकर बैठ गई और गीतों ने अपना आकार लेना प्रारंभ कर दिया। मन के कोमल किसलय इतने नर्म हो गए कि सूर्य की हर किरण से सहम जाते और लिख लेते इस प्रकार अनवरत काव्य रचनायें विभिन्न स्वरूपों में पुष्पित पल्लवित होती रही और आज तक वे “जैसे तैसे उमर बिता ली मैंने तेरे प्यार में” के रूप में यदा कदा प्रस्फुटित हो उठती हैं अस्तु समस्त पीड़ाओं को प्राथमिकता देते हुए आभार व्यक्त करता हूँ जिनके कारण मुझमें काव्य कर्म अनवरत बना रहा।