अकु श्रीवास्तवसच तो यह है कि लगभग पैंतालीस वर्ष की पत्रकारिता का इतना ही संतोष है कि जो चाहा, वह किया-मेहनत से किया, शिद्दत से किया। औपचारिक डिग्री लेते-लेते वर्ष 1979 से अखबार में नौकरी शुरू हो गई। अखबारी जुनून इतना कि किसी और क्षेत्र में कभी आवेदन नहीं किया। डेस्क और रिपोर्टिंग का लगातार काम करने के दौरान जब अपना शहर (लखनऊ) और परिवार छोड़ने के हालात हुए तो संस्थानों को बदलने का सिलसिला भी शुरू हुआ।देश के नामी-गिरामी अखबार समूहों में ढाई दशकों से ज्यादा समय से संपादक के रूप में काम कर रहे हैं। जयपुर, चंडीगढ़, मुंबई (कुछ समय के लिए), कोलकाता, मेरठ, जालंधर, इलाहाबाद, बनारस, फिर से चंडीगढ़ और पटना के बाद दिल्ली में राजनी... See more
अकु श्रीवास्तवसच तो यह है कि लगभग पैंतालीस वर्ष की पत्रकारिता का इतना ही संतोष है कि जो चाहा, वह किया-मेहनत से किया, शिद्दत से किया। औपचारिक डिग्री लेते-लेते वर्ष 1979 से अखबार में नौकरी शुरू हो गई। अखबारी जुनून इतना कि किसी और क्षेत्र में कभी आवेदन नहीं किया। डेस्क और रिपोर्टिंग का लगातार काम करने के दौरान जब अपना शहर (लखनऊ) और परिवार छोड़ने के हालात हुए तो संस्थानों को बदलने का सिलसिला भी शुरू हुआ।देश के नामी-गिरामी अखबार समूहों में ढाई दशकों से ज्यादा समय से संपादक के रूप में काम कर रहे हैं। जयपुर, चंडीगढ़, मुंबई (कुछ समय के लिए), कोलकाता, मेरठ, जालंधर, इलाहाबाद, बनारस, फिर से चंडीगढ़ और पटना के बाद दिल्ली में राजनीतिक, सामाजिक फिजाओं को देखा-समझा। उत्तर-पूर्व और पश्चिम के कई राज्यों के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को गहरे से समझने की कोशिश की। कुछ समय तक 'कादंबिनी' का भी संपादन किया। खाते में चार किताबें, जिसमें से 'सेंसेक्स क्षेत्रीय दलों का' और 'उत्तर उदारीकरण के आंदोलन' कई विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम का हिस्सा । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी बराबरी की हिस्सेदारी ।संप्रति 'पंजाब केस