महात्मा गाँधी पर एक नई समझ समय की ज़रूरत है। हमें लगता है कि हम गाँधीजी को जानते हैं, जबकि वैसा है नहीं। हालात तब और जटिल हो जाते हैं, जब हम देखते हैं कि विपरीत लक्ष्यों को लेकर चलने वाली विचारधाराएँ गाँधी-विचार की खंडित व्याख्याएँ करते हुए उन्हें अपने हितपोषण के लिए अपहृत करती हैं। आज हम देखते हैं कि यत्र-तत्र गाँधीजी को लेकर सतही सूचनाओं का घटाटोप है, किंतु एक उजली और धारदार समझ उससे नहीं बन पाती है। यह पुस्तक इस अभाव की पूर्ति करती है। इसे आप गाँधी-विचार में प्रवेश की प्राथमिकी भी कह सकते हैं। यह गाँधीजी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों पर यथेष्ट गम्भीरता, प्रामाणिकता और सुस्पष्टता से व्याख्यान करती है और हमारे �... See more
महात्मा गाँधी पर एक नई समझ समय की ज़रूरत है। हमें लगता है कि हम गाँधीजी को जानते हैं, जबकि वैसा है नहीं। हालात तब और जटिल हो जाते हैं, जब हम देखते हैं कि विपरीत लक्ष्यों को लेकर चलने वाली विचारधाराएँ गाँधी-विचार की खंडित व्याख्याएँ करते हुए उन्हें अपने हितपोषण के लिए अपहृत करती हैं। आज हम देखते हैं कि यत्र-तत्र गाँधीजी को लेकर सतही सूचनाओं का घटाटोप है, किंतु एक उजली और धारदार समझ उससे नहीं बन पाती है। यह पुस्तक इस अभाव की पूर्ति करती है। इसे आप गाँधी-विचार में प्रवेश की प्राथमिकी भी कह सकते हैं। यह गाँधीजी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों पर यथेष्ट गम्भीरता, प्रामाणिकता और सुस्पष्टता से व्याख्यान करती है और हमारे सामने उनके उचित परिप्रेक्ष्यों को प्रकट करती है। यह एक महात्मा के भीतर के मानुष को प्रकाशित करने का उद्यम भी है। इस छोटी-सी पुस्तक में गाँधीजी को समझने की सिलसिलेवार कुंजियाँ निहित हैं।.