जो व्यक्ति प्रेम में होता है उसके संपूर्ण इंद्रियों में प्रेम ही प्रेम बसा होता है। इतनी पवित्र, शुद्ध और स्पष्ट कोई दूसरी मनोदशा नहीं होती। चाहे वह प्रेम का मिलन पक्ष हो या प्रेम का विरह पक्ष। मैंने संदीप के दोनों पक्षों का बड़ी ही सूक्ष्मता अनुभव किया। जब वह अपनी प्रेयसी के साथ था तो संपूर्ण निष्ठा के साथ अपने प्रेम के कर्तव्यों का पालन किया और जब वे दोनों बिछड़े तो विरह की अग्नि में जलते हुए भी देखा, उसकी स्थिति देख तब तो ह्रदय विदिर्ण हो जाता, आज भी याद कर अश्रु स्वतः प्रसफुटित हो जाते हैं। संदीप अपने प्रेम के सागर में गोते लगाकर अपने स्मरण और शब्दों की मोतियों से इन कविताओं की माला बनाने लगा। उसने अपने प्रे... See more
जो व्यक्ति प्रेम में होता है उसके संपूर्ण इंद्रियों में प्रेम ही प्रेम बसा होता है। इतनी पवित्र, शुद्ध और स्पष्ट कोई दूसरी मनोदशा नहीं होती। चाहे वह प्रेम का मिलन पक्ष हो या प्रेम का विरह पक्ष। मैंने संदीप के दोनों पक्षों का बड़ी ही सूक्ष्मता अनुभव किया। जब वह अपनी प्रेयसी के साथ था तो संपूर्ण निष्ठा के साथ अपने प्रेम के कर्तव्यों का पालन किया और जब वे दोनों बिछड़े तो विरह की अग्नि में जलते हुए भी देखा, उसकी स्थिति देख तब तो ह्रदय विदिर्ण हो जाता, आज भी याद कर अश्रु स्वतः प्रसफुटित हो जाते हैं। संदीप अपने प्रेम के सागर में गोते लगाकर अपने स्मरण और शब्दों की मोतियों से इन कविताओं की माला बनाने लगा। उसने अपने प्रेम के जो बीज बोए, उन्हें अपने आंसूओं से सींचा,जिसकी उपज यह पुस्तक है।