साहित्यिक माहौल में पले बढ़े, तीन बार स्नातकोत्तर निमिष अग्रवाल विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हुए हैं और किशोरावस्था से ही लेखन, संपादन प्रकाशन से नाता रहा है। उनके उपन्यास 'बुझे ना बुझाए' की कामयाबी और दकियानूसों द्वारा खिंचाई से तरंगित निमिष अग्रवाल, वर्जनाएं उधेड़ने में खासा यकीन रखते हैं।
मौकापरस्त, बेरहम और इश्क की दुनिया की सैर पर निकले निमिष अग्रवाल 'हंड्रेड डेट्स' में सौ छोटे अफसानों के बहाने, रोज़ाना फ़ना होती बहुआयामी इंसानी जिंदगी का रंगरेज़ की नज़रों से इस्तिक़बाल करते हैं।
देह और मन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। देह एन्द्रिक सुख चाहता है । भोग-विलास की लालसा को अस्वीकार करना सामान्य मनुष्य के लिए स... See more
साहित्यिक माहौल में पले बढ़े, तीन बार स्नातकोत्तर निमिष अग्रवाल विभिन्न व्यवसायों से जुड़े हुए हैं और किशोरावस्था से ही लेखन, संपादन प्रकाशन से नाता रहा है। उनके उपन्यास 'बुझे ना बुझाए' की कामयाबी और दकियानूसों द्वारा खिंचाई से तरंगित निमिष अग्रवाल, वर्जनाएं उधेड़ने में खासा यकीन रखते हैं।
मौकापरस्त, बेरहम और इश्क की दुनिया की सैर पर निकले निमिष अग्रवाल 'हंड्रेड डेट्स' में सौ छोटे अफसानों के बहाने, रोज़ाना फ़ना होती बहुआयामी इंसानी जिंदगी का रंगरेज़ की नज़रों से इस्तिक़बाल करते हैं।
देह और मन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। देह एन्द्रिक सुख चाहता है । भोग-विलास की लालसा को अस्वीकार करना सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं है। प्यास और भूख की तरह यह जैविक आवश्यकता है। यह पानी, रोटी और वासना का त्रिकोणीय गणित है। इन्हें वश में करना बहुत कठिन है। कामिनी और कांचन का आनंद त्यागना वीतरागियों, सिद्ध योगियों के लिए भले संभव हो लेकिन एक गृहस्थ के लिए असंभव है।