पुस्तक का नाम - ‘लोहे का घर’ विधा - यात्रा वृत्त भाषा - हिन्दी लेखक - देवेन्द्र पाण्डेय ‘बेचैन आत्मा’ प्रकाशन - स्याही प्रकाशन सम्पादक - पं0 छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ दुनिया के साहित्यिक आकाश में काशी विशेष रूप से प्रदीप्त नक्षत्रों के कारण अपना एक अलग महत्व रखता है। अपने यात्रा वृत्तांत ‘लोहे का घर’ से देवेन्द्र पाण्डेय ‘बेचैन आत्मा’ जी की उन नक्षत्रों में शीघ्र ही बहुत प्रतिष्ठित पहचान बन चुकी है। इनका यह यात्रा वृत्तांत हिंदी भाषा में लिखा गया है और इसका प्रकाशन नामचीन व श्रेष्ठ प्रकाशन ‘स्याही प्रकाशन’ ने किया है। इसमें देवेन्द्र पाण्डेय जी अपनी यात्रा के दौरान देखी-सुनी सभी चीजों का उपयुक्त वर्णन करते ... See more
पुस्तक का नाम - ‘लोहे का घर’ विधा - यात्रा वृत्त भाषा - हिन्दी लेखक - देवेन्द्र पाण्डेय ‘बेचैन आत्मा’ प्रकाशन - स्याही प्रकाशन सम्पादक - पं0 छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ दुनिया के साहित्यिक आकाश में काशी विशेष रूप से प्रदीप्त नक्षत्रों के कारण अपना एक अलग महत्व रखता है। अपने यात्रा वृत्तांत ‘लोहे का घर’ से देवेन्द्र पाण्डेय ‘बेचैन आत्मा’ जी की उन नक्षत्रों में शीघ्र ही बहुत प्रतिष्ठित पहचान बन चुकी है। इनका यह यात्रा वृत्तांत हिंदी भाषा में लिखा गया है और इसका प्रकाशन नामचीन व श्रेष्ठ प्रकाशन ‘स्याही प्रकाशन’ ने किया है। इसमें देवेन्द्र पाण्डेय जी अपनी यात्रा के दौरान देखी-सुनी सभी चीजों का उपयुक्त वर्णन करते हैं, पुस्तक में यात्रा विवरण बेहद मनोरम व मोहक हैं। गढ़े गए भावनात्मक प्रतिबिंब प्रभावक हैं और उपयुक्त स्थान-स्थान पर जीवन के मार्गदर्शन भी स्थापित हैं। पाण्डेय जी ने अपने यात्रा वृत्त के माध्यम से जीवन के अनेक रहस्यों से पर्दा उठा दिया है। शब्द-शब्द में बड़े-बड़े वैचारिक संकटों का समाधान प्रस्तुत करने में सफल रहे हैं। जीवन के जिन रहस्यों की गुत्थी न समाज सुलझा पाया न समाज द्वारा अपनाया गया कोई धर्म, इस यात्रा वृत्तांत में आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी ने उन सभी रहस्यों को ऐसे खेल-खेल में सुलझा दिया है कि सुधी पाठक पढ़ते समय अचंभित रह जाता है। पाण्डेय जी के वृत्तांत में पाठक स्वयं को एक यात्री जान लेता है और यात्रा के दौरान दुर्घटनाओं में काम आने वाली अनेक जानकारियों व सावधानियों से सजग हो जाता है। ‘लोहे का घर’ में और यात्रा वृत्तांतों की तरह सिर्फ शब्दों की कृत्रिम संघटना नहीं है अपितु उपयुक्त बिम्ब, मोहक कल्पनाओं का श्रृंगार, यथार्थ का सटीक चित्रण, जागरूकता के तथ्य, इतिहास के वर्णन और संस्कृति का संतुलित प्रकार से विवेचन व संरक्षण के निर्देश मिलते हैं। जगह-जगह के रसम रिवाज, रेल यात्रियों के मनोरंजन व जीवन यापन के तरीके, लुभावनी बातचीत, दूर-दराज के स्थान से एक रेल में आकर रहने व कुछ समय गुजारने के दौरान की जानी-अनजानी सरस अनूभूतियाँ, एक दूसरे का सहयोग-असहयोग, स्वच्छता एवं म्लानता, अमीरी-गरीबी व रेल का अपना अनूठा समाजवाद क्या कुछ नहीं लिख डाला है देवेन्द्र पाण्डेय जी ने अपने इस यात्रा वृत्तांत में। प्राचीन लेखन रिवाजों को नए प्रयोगों में बांधकर छोटे वाक्य शिल्प में परिवर्तित करते हुए पाण्डेय जी ने एकदम नवीन प्रकृति के गद्यवृत्त की रोचक शैली से साहित्य प्रेमियों को जो अनूठा ग्रन्थ उपहार दिया है वह अब तक छूटा हुआ मनोरथ था। गद्य खासकर यात्रा संदर्भ पाठकों के लिए यह रचना सहेजने योग्य है। ‘लोहे का घर’ लिखकर देवेन्द्र पाण्डेय जी विश्व के साहित्यिक इतिहास में एक बड़े हस्ताक्षर बनाकर उभरे हैं। काशी में ही नहीं विश्व के यात्रा वृत्त लेखकों और पाठकों के समुदाय में इनका यह ‘लोहे का घर’ काफी सराहा जा रहा है। इस वृत्तांत में इनका व्यक्तिगत अनुभव, विवरणात्मक भाषा, संस्कृति व समृद्ध इतिहास, इतिहास का सामाजिक संघर्ष, भाषा का भावनात्मक विन्यास, भावनात्मक प्रभाव, स्थिति अवलोकन और उसके साथ विचार विमर्श, प्रतीकात्मक सुझाव व मार्गदर्शन, रचनात्मक भाषा, प्रयोग और कलात्मक शिल्प जैसे यात्रा वृतांत के सारे गुण इस रचना में पाठकों को सहज मिलते हैं। प्रकृति के मनोरम दृश्य, आचार-विचार, मनोरंजन व उसके नवीन आयाम, समाज के जीवन यापन के सही-गलत तरीके, लोगों के जीवन के प्रति निर्मित दृष्टिकोण, स्थान व उससे जुड़े जीवन व सभ्यता की छुपी तस्वीर का अपने हिसाब से चित्रण लेखक ने ऐसे किया है जैसे उसने सब रसों को एक कागज की कटोरी में उतार कर अपने प्रिय पाठकों को तत्काल भेंट करना चाहता हो। ‘लोहे का घर’ यात्रा वृत्त वाराणसी अथवा काशी के वरिष्ठ साहित्यकार देवेन्द्र पाण्डेय ‘बेचैन आत्मा’ की अनमोल कृति साबित हुई है। इसका सम्पादन अपने काम के लिए दुनिया में मशहूर पं0 छतिश द्विवेदी ‘कुण्ठित’ ने किया है। देवेन्द्र पाण्डेय जी सरकारी महकमें में लेखाकार थे और इन्होंने अपने जीवन भर अपने लेखाकार की सेवा देश के अनेक जगहों पर दी। इनके अनेक स्थानांतरण भी हुए जिसके कारण उनको रेलवे की नियमित यात्राएँ करनी पड़ीं। रेल की अपनी यात्रा के दौरान जो कुछ इन्होंने जिया, जाना और समझा इन्होंने कल्पना के सौंदर्य से उसे सजाया और इस लेख वृत्त पुस्तक में करीने से सबके लिए सौप दिया, ताकि आप भी भावनाओं की उस यात्रा में सहयात्री बनकर साथ हो लें। आइए, हम सब उनके सहयात्री बनें। ‘भाव जीवन’ भी एक यात्रा ही तो है...!