कानपुर से शुरू हुए इस सफ़र में पांच शहरों और उसमें वक्त-बेवक्त मिले कुछ जाने, कुछ अनजाने लोगों के अनसुने-अनछुए संस्मरण हो जो पाठक को लगातार अपनी आग़ोश में लेकर चलते हैं! यादों की इस मुसाफ़त का सेंट्रल प्वाइंट ‘आशियाना’ है। जिसे लेखक आज भी अपने अधूरे ख्वाबों की ताबीर के लिए तलाशता है और उसमें अपनी कहानी के सभी क़िरदारों को एक साथ उठता बैठता देखना चाहता है! ‘आशियाना, मैकराबर्टगंज’ महज़ एक घर नहीं, उससे वाबस्ता एक परिवार के बुनते-बिखरते शीराजे़ की दास्तां है। एक मिडिल क्लास फै़मिली वैल्यूज़ का सौ साल का दस्तावेज़ है!