“महेश एलकुंचवार के सभी नाटक आज भी समकालीन और सांगत हैं, क्योंकि वह ज़िंदगी के मूलभूत सवालों से जूझते हैं, लगातार सवाल पूछते हैं, लगातार खोज करते हैं। वह अपने पात्रों को इतने प्रेम और सहजता से रचते हैं कि हम हर एक से जुड़ाव महसूस करने लगते हैं, उनमें अपनी छवि देखने लगते हैं। उनके लेखन में एक तरह की ईमानदारी नज़र आती है — कोई समझौता नहीं, कोई दावा नहीं, कोई दिखावा नहीं। महेश एलकुंचवार के इस संग्रह के नाटकों का चयन उनके लेखन के विभिन्न चरणों से होने के कारण उनके सरोकारों की झलक देने के साथ-साथ, बतौर नाटककार उनकी लेखकीय यात्रा का अंदाज़ा भी बख़ूबी देता है। हिंदी क्षेत्र में शायद एलकुंचवार के नाटक सबसे ज़्यादा खेले गए हैं।... See more
“महेश एलकुंचवार के सभी नाटक आज भी समकालीन और सांगत हैं, क्योंकि वह ज़िंदगी के मूलभूत सवालों से जूझते हैं, लगातार सवाल पूछते हैं, लगातार खोज करते हैं। वह अपने पात्रों को इतने प्रेम और सहजता से रचते हैं कि हम हर एक से जुड़ाव महसूस करने लगते हैं, उनमें अपनी छवि देखने लगते हैं। उनके लेखन में एक तरह की ईमानदारी नज़र आती है — कोई समझौता नहीं, कोई दावा नहीं, कोई दिखावा नहीं। महेश एलकुंचवार के इस संग्रह के नाटकों का चयन उनके लेखन के विभिन्न चरणों से होने के कारण उनके सरोकारों की झलक देने के साथ-साथ, बतौर नाटककार उनकी लेखकीय यात्रा का अंदाज़ा भी बख़ूबी देता है। हिंदी क्षेत्र में शायद एलकुंचवार के नाटक सबसे ज़्यादा खेले गए हैं।” — कीर्ति जैन
“अपनी खोज में व्यग्र और अपनी ईमानदारी में अडिग एलकुंचवार अपनी भावनात्मक व्यापकता, बौद्धिक दृढ़ता और सूक्ष्मता के लिए आधुनिक भारतीय रंगमंच में अद्वितीय हैं।” — गिरीश कर्नाड
“महेश के नाटक आज भी प्रासंगिक और रोमांचक बने हुए हैं और नई पीढ़ी का ध्यान आकर्षित करने की मांग करते हैं।” — विजया मेहता