हिन्दी कथा-साहित्य को सांस्कृतिक वैचारिकता, मानवीय अर्थवत्ता, भाषा की असीम शक्ति और अनूठी लखनवी शैली के जरिये एक नया अन्दाज और नयी भंगिमा देने वाले अमृतलाल नागर का जन्म 17 अगस्त, 1916 को गोकुलपुरा (आगरा) में हुआ था। पारिवारिक कठिनाइयों के कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। उन्होंने अपने व्यक्तित्व को दो शब्दों ‘व्यस्त-मस्त’ में विभाजित कर रखा था। ‘बूँद और समुद्र’, ‘अमृत और विष’, ‘मानस का हंस’, ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ तथा ‘खंजन नयन’ ने उन्हें हिन्दी-साहित्य जगत का महत्त्वपूर्ण स्तम्भ बना दिया। पत्रकारिता का क्षेत्र भी नागरजी की बहुमुखी प्रतिभा से अछूता नहीं रहा। वे ‘सुनीति’, ‘सिनेमा समाचार’ और ‘चकल्लस’ आदि... See more
हिन्दी कथा-साहित्य को सांस्कृतिक वैचारिकता, मानवीय अर्थवत्ता, भाषा की असीम शक्ति और अनूठी लखनवी शैली के जरिये एक नया अन्दाज और नयी भंगिमा देने वाले अमृतलाल नागर का जन्म 17 अगस्त, 1916 को गोकुलपुरा (आगरा) में हुआ था। पारिवारिक कठिनाइयों के कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। उन्होंने अपने व्यक्तित्व को दो शब्दों ‘व्यस्त-मस्त’ में विभाजित कर रखा था। ‘बूँद और समुद्र’, ‘अमृत और विष’, ‘मानस का हंस’, ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ तथा ‘खंजन नयन’ ने उन्हें हिन्दी-साहित्य जगत का महत्त्वपूर्ण स्तम्भ बना दिया। पत्रकारिता का क्षेत्र भी नागरजी की बहुमुखी प्रतिभा से अछूता नहीं रहा। वे ‘सुनीति’, ‘सिनेमा समाचार’ और ‘चकल्लस’ आदि पत्रिकाओं के सम्पादन से सम्बद्ध रहे।