यह पुस्तक उन पाठकों के लिए है जो वास्तव में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में कुछ बदलाव चाहते हैं, उनके लिए कुछ करना चाहते हैं और यह समझना चाहते हैं कि नारीवाद कैसे एक महिला को सशक्त बना सकता है। पितृसत्ता को हटाकर मातृसत्ता का रास्ता खोजने वाले लोगों को भले ही यह किताब पसंद ना आए लेकिन इस किताब का उद्देश्य कलयुगी नारीवाद से उबर कर असली नारीवाद को अपनाना है। इसके अतिरिक्त जो भी महिलायें पुरुषों से नफ़रत करने को नारीवाद समझ रहीं है, इस पुस्तक का उद्देश्य उन्हें सच से रूबरू कराना है। यह पुस्तक नारीवाद का विरोध नहीं करती और न ही किसी भी स्त्री को हीन या गलत ठहराना चाहती है। पुस्तक का वास्तविक उद्देश्य उसके पाठकों की �... See more
यह पुस्तक उन पाठकों के लिए है जो वास्तव में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में कुछ बदलाव चाहते हैं, उनके लिए कुछ करना चाहते हैं और यह समझना चाहते हैं कि नारीवाद कैसे एक महिला को सशक्त बना सकता है। पितृसत्ता को हटाकर मातृसत्ता का रास्ता खोजने वाले लोगों को भले ही यह किताब पसंद ना आए लेकिन इस किताब का उद्देश्य कलयुगी नारीवाद से उबर कर असली नारीवाद को अपनाना है। इसके अतिरिक्त जो भी महिलायें पुरुषों से नफ़रत करने को नारीवाद समझ रहीं है, इस पुस्तक का उद्देश्य उन्हें सच से रूबरू कराना है। यह पुस्तक नारीवाद का विरोध नहीं करती और न ही किसी भी स्त्री को हीन या गलत ठहराना चाहती है। पुस्तक का वास्तविक उद्देश्य उसके पाठकों की सोच में बदलाव लाना है। आशा है कि इस किताब को पढ़ने के पश्चात हम असली नारीवाद को समझ पाएंगे और वर्तमान में पनपते कलयुगी नारीवाद से खुद को दूर कर पाएंगे।