मनोज शर्मा की काव्य-यात्र निरंतर उत्थान की ओर रही है। वे न कभी अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता से भटके हैं, और न अपने काव्य-प्रयोजनों से। वे पूरी सजगता तथा ईमानदारी के साथ हमारे समय की शिनाख़्त और तस्दीक करते हैं। अपनी भाषा, कहन और संवेदना को वे औज़ार की तरह बरतते हैं। वे जिस तरह जटिल यथार्थ से टकराते हैं, यह उनके जुझारूपन और सुन्दर दृष्टि का ही प्रमाण है। मनोज शर्मा कठिन समय के कवि हैं। उनकी कविताओं में ठोसपन भी है और आर्द्रता भी। प्रकृति हो या समाज, राजनीति हो या दर्शन, वे अपनी सोच और विवेक से अपने रचना दायित्व का निर्वाह करते हैं। छोटी सी जगह में पैदा हुआ यह कवि_ बड़ी जगह घेरता है। -महाराज कृष्ण संतोषी