Sampurn Yakshini Rahasya 64 Yogini Sadhna ( सम्पूर्ण यक्षिणी रहस्य 64 योगिनी साधना ) Published By Randhir Prakashan , Pages - 240 , MRP - 350 And Baglamukhi Brahmastra Vidya ( बगलामुखी बह्मास्त्र विद्या ) Published By Randhir Prakashan , Pages - 183 , MRP - 280 , यक्षिणी व योगिनी साधना : सार संक्षेप जीवन में विद्या का विस्तार और जब तक मनुष्य ज्ञान का उद्भव नहीं होता, तब तक वह अज्ञान या सांसारिक वासनाओं से मुक्त नहीं हो सकता। यक्षिणी साधना का सम्बन्ध मनुष्य के जीवन में चेतना और शक्ति से है । यक्षिणी व योगिनी साधना का तात्पर्य है चेतना का विस्तार । यह साधना साधक को अधिक चेतन बनाने का प्रयास है। इस साधना से मनुष्य भौतिक सुख 'के साथ आत्मिक उन्नति भी प्राप्त करता है। जिस प्रकार यक्षिणी की साधना विभिन्न भौतिक पदार्थों को उपलब्ध करान... See more
Sampurn Yakshini Rahasya 64 Yogini Sadhna ( सम्पूर्ण यक्षिणी रहस्य 64 योगिनी साधना ) Published By Randhir Prakashan , Pages - 240 , MRP - 350 And Baglamukhi Brahmastra Vidya ( बगलामुखी बह्मास्त्र विद्या ) Published By Randhir Prakashan , Pages - 183 , MRP - 280 , यक्षिणी व योगिनी साधना : सार संक्षेप जीवन में विद्या का विस्तार और जब तक मनुष्य ज्ञान का उद्भव नहीं होता, तब तक वह अज्ञान या सांसारिक वासनाओं से मुक्त नहीं हो सकता। यक्षिणी साधना का सम्बन्ध मनुष्य के जीवन में चेतना और शक्ति से है । यक्षिणी व योगिनी साधना का तात्पर्य है चेतना का विस्तार । यह साधना साधक को अधिक चेतन बनाने का प्रयास है। इस साधना से मनुष्य भौतिक सुख 'के साथ आत्मिक उन्नति भी प्राप्त करता है। जिस प्रकार यक्षिणी की साधना विभिन्न भौतिक पदार्थों को उपलब्ध कराने में सक्षम है, उसी प्रकार योगिनी साधना का अर्थ है जागरूकता का प्रसार । यह साधनायें बुद्धि के स्तर से पार का अनुभव हैं । इन साधनाओं से मनुष्य के जीवन में अनेक विलक्षण अनुभूतियाँ जागृत होती हैं, इनसे मनुष्य बाह्य व पदार्थमय जगत को छोड़कर स्वयं को परा अवस्था में स्थिर कर सकता है। यक्षिणी, योगिनी व अप्सरा साधना मात्र शुद्धता, भौतिकता या आकर्षण का साधन न होकर परा आनन्द का विज्ञान है । ऐन्द्रिक सुख को छोड़कर दिव्य तत्वों का आनन्द लेने हेतु यह साधनायें अत्यन्त विस्मयकारी हैं । दो शब्द प्रस्तुत पुस्तक एक ‘मास्टर की' के समान है इसमें उल्लेखित तन्त्र, मन्त्र अथवा यन्त्र द्वारा विधिवत् पूजन-अर्चन से किसी भी समस्या का हल प्राप्त किया जा सकता है। आशा है भक्त साधक- वृन्द ममतामयी माँ की महिमा से मण्डित मन्त्रों का मनन- पूर्वक जप करके मातृ-कृपा से मंगलमय एवं शान्त जीवन को साकार रूप देने में सफल होंगे। हे पाठक-वृन्द! इस पुस्तक की त्रुटियों की ओर ध्यान नहीं देकर एक अबूझ, अल्पज्ञ व्यक्ति मानकर क्षमा करें, यही करबद्ध निवेदन । आपके बहुमूल्य सुझाव प्राप्त हों, यह आग्रह । - पण्डित दुर्गाप्रसाद शर्मा नलखेड़ा