भारतीय सनातन वाङ्मय के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं ऋक्, यजुः, साम और अथर्व वेद वैदिक संहिताओं के साथ ब्राह्मण ग्रन्थ भी हैं। इनमें यज्ञों का सविस्तार वर्णन है। ब्राह्मणों के अन्तिम भाग आरण्यकों में स्वतन्त्र रूप से दार्शनिक प्रश्नों पर विचार किया गया है। उपनिषदों में ज्ञानकाण्ड का निरूपण है। वेदांगों के रूप में सूत्र- साहित्य का विस्तार इन हुआ, जिसके चार विभाग हैं- (1) श्रीतसूत्र में यज्ञों का विधान तथा वर्गीकरण किया गया है। (2) गृह्यसूत्र में गृहस्थ से सम्बन्ध रखने वाले सोलह संस्कारों तथा कर्मकाण्ड का वर्णन है। (3) धर्मसूत्र में सामाजिक, राजनैतिक एवं वैधानिक व्यवस्था दी गयी है। भारतीय इतिहास में कानूनी साहित्य क�... See more
भारतीय सनातन वाङ्मय के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं ऋक्, यजुः, साम और अथर्व वेद वैदिक संहिताओं के साथ ब्राह्मण ग्रन्थ भी हैं। इनमें यज्ञों का सविस्तार वर्णन है। ब्राह्मणों के अन्तिम भाग आरण्यकों में स्वतन्त्र रूप से दार्शनिक प्रश्नों पर विचार किया गया है। उपनिषदों में ज्ञानकाण्ड का निरूपण है। वेदांगों के रूप में सूत्र- साहित्य का विस्तार इन हुआ, जिसके चार विभाग हैं- (1) श्रीतसूत्र में यज्ञों का विधान तथा वर्गीकरण किया गया है। (2) गृह्यसूत्र में गृहस्थ से सम्बन्ध रखने वाले सोलह संस्कारों तथा कर्मकाण्ड का वर्णन है। (3) धर्मसूत्र में सामाजिक, राजनैतिक एवं वैधानिक व्यवस्था दी गयी है। भारतीय इतिहास में कानूनी साहित्य का श्रीगणेश यहीं से होता है। धर्मसूत्र का विस्तार स्मृतियों के रूप में हुआ है। (4) शुल्बसूत्र में रेखिकीय गणित वर्णित व यज्ञवेदी के निर्माण और नाप आदि का वर्णन है। वेदांग छ: हैं- शिक्षा, कल्प (कर्मकाण्ड), निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष ज्योतिष को वेदपुरुष का नेत्र माना है। इसके ज्ञान के बिना वैदिक कार्य अन्धकारमय हैं। भारतीय संस्कृति अति विलक्षण है। इसके सभी कर्मविधान पूर्णतः वैज्ञानिक हैं! जन्म के पूर्व से लेकर मृत्यु के बाद तक ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड मानव के जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है। मनुष्य जो जो क्रियाएँ करता है, उन सबको हमारे दूरदर्शी ऋषि-मुनियों ने प्रमाणिक ढंग से सुनियोजित एवं सुसंस्कृत किया है और उन सबका उद्देश्य परम श्रेय की प्राप्ति हैं। शास्त्र की मर्यादा के अनुसार चलने से अन्तः करण शुद्ध होता है और अन्तःकरण में ही कल्याण की इच्छा जाग्रत होती है। इसी भावना से सरल संग्रह "पूजा कर्म प्रवेशिका" को विद्वद्जनों के समक्ष समर्पित करते हुए मुझे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।