हाहारावतन्त्रोक्त श्रीगुह्यकालीपूजापद्धतिः (Guhyakaali Puja Paddhati) Haharavatantra - Mahakaal Samhita प्राचीन काल से भारत भूमि पर शक्ति उपासना का प्रचलन रहा है। प्रबल कलिकाल में महाशक्ति के काली स्वरूप की उपसना प्रशस्त है। भगवती काली के नाना वपुषों में ’गुह्यकाली’ का प्राधान्य है। माता गुह्यकाली पौलस्त्य रावण, भगवान् रामचन्द्र, भरत जी आदि की ईष्टदेवी हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ अथर्वणवेद से सम्बद्ध हाहारावतन्त्र के आधार पर गुह्यकाली उपासना का सांगोपांग विवेचन करता है। ग्रन्थ में हाहारावतन्त्र के अनुसार मण्डपप्रवेश, न्यास, भूतशुद्धि, त्रिपात्र स्थापन, सप्ताविंशती पीठपूजा, षोडशावरणपूजा, बलिदान, मन्त्रजप, होमपद्धति तथा उद्वासन पर्यन्त �... See more
हाहारावतन्त्रोक्त श्रीगुह्यकालीपूजापद्धतिः (Guhyakaali Puja Paddhati) Haharavatantra - Mahakaal Samhita प्राचीन काल से भारत भूमि पर शक्ति उपासना का प्रचलन रहा है। प्रबल कलिकाल में महाशक्ति के काली स्वरूप की उपसना प्रशस्त है। भगवती काली के नाना वपुषों में ’गुह्यकाली’ का प्राधान्य है। माता गुह्यकाली पौलस्त्य रावण, भगवान् रामचन्द्र, भरत जी आदि की ईष्टदेवी हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ अथर्वणवेद से सम्बद्ध हाहारावतन्त्र के आधार पर गुह्यकाली उपासना का सांगोपांग विवेचन करता है। ग्रन्थ में हाहारावतन्त्र के अनुसार मण्डपप्रवेश, न्यास, भूतशुद्धि, त्रिपात्र स्थापन, सप्ताविंशती पीठपूजा, षोडशावरणपूजा, बलिदान, मन्त्रजप, होमपद्धति तथा उद्वासन पर्यन्त गुह्यकालीपूजा का सविस्तार वर्णन किया गया है। पाठकों की सुविधा के लिए मन्त्रभाग ’संस्कृत’ में तथा व्याख्या-निर्देश ’हिन्दी’ में दिये गये है। सुकुमार साधकों के हितार्थ लघुपूजाविधि का संकलन किया गया है। विविध मातृकाओं के आधार पर ग्रन्थ में अप्रकाशित कई दुर्लभ स्तोत्रों का संकलन किया गया है। लेखक के विषय में- लेखक आगमशास्त्र के अध्येता, शोधकर्ता, ब्लॉगर एवं वक्ता है जो तन्त्रागम की गौरवशाली गुरूपरम्परा से अपना सम्बन्ध रखते है। इन्होनें गुरूपम्परा से वेद तथा तन्त्र का अध्ययन विविध गुरूजनों की निश्रा में किया है। लौकिक शिक्षा अभियान्त्रिकी, पुरातत्त्व तथा परामनोविज्ञान विषय में ग्रहण की है। आगमशास्त्र एवं आगमिक परम्परा के संरक्षण हेतु इन्हें वर्ष 2024 में ’युवाविप्र परिषद्’, उज्जयिनी द्वारा ’आगमाचार्य’ की उपाधि से अलंकृत किया गया है। लेखक के द्वारा पूर्व में दो मूलपुस्तकों का लेखन, दुर्लभ मातृकाओं के आधार पर आठ पद्धतिग्रन्थों का संपादन तथा पच्चीस से अधिक शोधपत्रों का प्रकाशन किया गया है।