प्रेम पर बोल रहीं और लिख रहीं स्त्रियाँ दरअसल करुणा की आवाज़ को अपनी ज़ुबान दे रही हैं। सुमन जी की कविताओं से गुज़रते हुए खुले मन में विचरण करते संवेदनशील एहसासों से रूबरू होकर उनके साथ ठहरकर सुस्ताने जैसा लगा। प्राकृतिक बिंबों से लैस ये कविताएँ प्रेम और दुःख का स्पर्श यूँ कराती हैं जैसे धरती को नदी और पेड़ अपने अस्तित्व का बोध कराते हैं।संकलित कविता ‘कवि और मन’, प्रेम के अवमूल्यन की ओर पूरी ताक़त से इंगित करता है, यह ताक़त साहित्यिक समझ के बिना संभव नहीं है। इस कविता में एक पंक्ति है, ‘कवि से प्रेम होना है, मिट जाना’।यह पंक्ति मेरे अभी तक पढ़े और आत्मा में तारी हुए उन पंक्तियों में से है जिसकी विवेचना आप सिर्�... See more
प्रेम पर बोल रहीं और लिख रहीं स्त्रियाँ दरअसल करुणा की आवाज़ को अपनी ज़ुबान दे रही हैं। सुमन जी की कविताओं से गुज़रते हुए खुले मन में विचरण करते संवेदनशील एहसासों से रूबरू होकर उनके साथ ठहरकर सुस्ताने जैसा लगा। प्राकृतिक बिंबों से लैस ये कविताएँ प्रेम और दुःख का स्पर्श यूँ कराती हैं जैसे धरती को नदी और पेड़ अपने अस्तित्व का बोध कराते हैं।संकलित कविता ‘कवि और मन’, प्रेम के अवमूल्यन की ओर पूरी ताक़त से इंगित करता है, यह ताक़त साहित्यिक समझ के बिना संभव नहीं है। इस कविता में एक पंक्ति है, ‘कवि से प्रेम होना है, मिट जाना’।यह पंक्ति मेरे अभी तक पढ़े और आत्मा में तारी हुए उन पंक्तियों में से है जिसकी विवेचना आप सिर्फ़ अपने जीवन में किए गए आत्मीय व्यावहारिकता से ही कर सकते हैं, प्रेम देकर। यहाँ शब्द कम पड़ जाते हैं। इन कविताओं में बचपन का निश्छल मन आज़ाद ख़याल चित्रित करते हुए साफ़-साफ़ दिखायी देता है। कवयित्री तारों से अक्कड़-बक्कड़ का खेल पाठकों को अपने कवित्त से बखूबी खिला देती हैं। यह कितना रोचक है इन कविताओं में देखना कि प्रेम में मिली पीड़ाएँ और दुःख में पाए दर्द को एक दूसरे के बरअक्स यूँ देखना जैसे आईने में ख़ुद को अपने अतीत के अनगिनत स्मृतियों के साथ देखना। ‘रह जाना मुझे इतना ही’ सुधी पाठक ऐसे स्वीकार करेंगे जैसे ज़िन्दगी में रोशनी की स्वीकार्यता है।