कभी कभी तो सामने वाले अधूरे मकान के बाहर कई दिन से गिट्टी तोड़ती मजदुरनी जब दिखाई नहीं देती तो भी मन बेचैन हो जाता है या वो बुजुर्ग जो उदास से रोज़ शाम को अपने बरामदे में निरीह से दिखाई देते थे कई बरसों से जब चार दिन तक दिखाई नहीं दिये तो उस घर के सामने वाले दुकानदार से पूछने पर मालुम हुआ कि उनको बेटी ले गई है अपने घर देहरादून बहुत ज़िद करके ले गई है. तब उस रात मुझे बड़े चैन की नींद आई. वो करोना काल में जब खिलखिलाते स्कूल जाते बच्चे नहीं दिखे महीनों तक तो लगा कि बहार गुम हो गई है मेरे शहर से, और कभी कोई ज्यादती की एक खबर कई रात सोने नहीं देती, देखें तो कुछ भी जुड़ा हुआ नही लगता पर एक दूसरे के पूरक हैं ये सब, सब कुछ महसूस कर प�... See more
कभी कभी तो सामने वाले अधूरे मकान के बाहर कई दिन से गिट्टी तोड़ती मजदुरनी जब दिखाई नहीं देती तो भी मन बेचैन हो जाता है या वो बुजुर्ग जो उदास से रोज़ शाम को अपने बरामदे में निरीह से दिखाई देते थे कई बरसों से जब चार दिन तक दिखाई नहीं दिये तो उस घर के सामने वाले दुकानदार से पूछने पर मालुम हुआ कि उनको बेटी ले गई है अपने घर देहरादून बहुत ज़िद करके ले गई है. तब उस रात मुझे बड़े चैन की नींद आई. वो करोना काल में जब खिलखिलाते स्कूल जाते बच्चे नहीं दिखे महीनों तक तो लगा कि बहार गुम हो गई है मेरे शहर से, और कभी कोई ज्यादती की एक खबर कई रात सोने नहीं देती, देखें तो कुछ भी जुड़ा हुआ नही लगता पर एक दूसरे के पूरक हैं ये सब, सब कुछ महसूस कर पाना कितना दरद से भरा होता है, ना। ये सब, मुझ में सैलाब उठाते रहते हैं और मैं संयत ही नहीं हो पाता तो कविता फूट पड़ती है हल्की बौछार से लेकर भारी बारिश बन. इन छोटी छोटी कविताओं के प्रसंग अलग अलग हैं प्रेम से विछोह तक, लाचारी से आशा तक, समाज की विसंगतियों तक, नाउम्मीदी की गहन अंधेरी रात से इक अकेले जुगनू के सहारे तक, वात्सल्य से त्याग तक। आपकी प्रतिक्रिया की मुझे प्रतीक्षा रहेगी।