रामचरितमानस एक ऐसा शाश्वत काव्य ग्रंथ है जिसे हम भारतीय समाज की संस्कृति-संहिता कहते हैं। यह विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो नित नवीन है, जिसकी प्रासंगिकता का प्रवाह सनातन है, जिसमें प्रत्येक युग के लिए आचार-व्यवहार की पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। रामचरितमानस पूर्ण रूपेण भारतीय जीवन मूल्यों का अधिष्ठाता काव्य ग्रंथ है। इसमें मानव चेतना के प्रत्येक चरण को उद्घाटित किया गया है। भारतीय समाज विशुद्ध रूपेण संस्कृत समाज है। इसकी बुनावट में संबंधों का विशेष महत्त्व है। वास्तविकता यह है कि हम यदि भारतीय संस्कृति का पर्याय खोजते हैं तो एक ही शब्द उस े रूपायित करता है-संबंध। ‘संबंधो ं की समझ’ भारतीय समाज को एक र�... See more
रामचरितमानस एक ऐसा शाश्वत काव्य ग्रंथ है जिसे हम भारतीय समाज की संस्कृति-संहिता कहते हैं। यह विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो नित नवीन है, जिसकी प्रासंगिकता का प्रवाह सनातन है, जिसमें प्रत्येक युग के लिए आचार-व्यवहार की पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। रामचरितमानस पूर्ण रूपेण भारतीय जीवन मूल्यों का अधिष्ठाता काव्य ग्रंथ है। इसमें मानव चेतना के प्रत्येक चरण को उद्घाटित किया गया है। भारतीय समाज विशुद्ध रूपेण संस्कृत समाज है। इसकी बुनावट में संबंधों का विशेष महत्त्व है। वास्तविकता यह है कि हम यदि भारतीय संस्कृति का पर्याय खोजते हैं तो एक ही शब्द उस े रूपायित करता है-संबंध। ‘संबंधो ं की समझ’ भारतीय समाज को एक रूप में विश्व-समाज के सम्मुख प्रस्तुत करती है। संबंधों की व्यापक समझ हमें अपने सांस्कृतिक सरोकारों से जोड़ती है। व्यक्ति-व्यक्ति, व्यक्ति-राष्ट्र, व्यक्ति-संस्कृति एवं व्यावहारिक जीवन के संबंध ही हमारे जीवन को अर्थवत्ता प्रदान करते हैं। व्यक्ति जहाँ सुशिक्षित होकर अपना आदर्श खोजता है, वहाँ भी संबंधाें की समझ ही अपनी प्राणवंत भूमिका निर्वाह करती है। घर-परिवार, देश-समाज से लेकर, वृक्ष, नदी, पर्वत, प्रकृति के साथ हमारे संबंध हमारी विशेषता हैं, जिनमें अनेक लोकाचार और लोक विश्वास शामिल हैं। संबंध हमारे भीतर कर्तव्य की चेतना जाग्रत करते हैं।