रामधारी सिंह 'दिनकर' - 23 सितम्बर, 1908 को मुँगेर के सिमरिया ग्राम में एक किसान परिवार में जन्म। बचपन से ही कठोर जीवन-संग्राम से गुज़रने के कारण उनके व्यक्तित्व का जुझारूपन अन्त तक बना रहा और वही उनकी रचनाओं में भी अभिव्यक्त हुआ। 1932 में बी.ए. ऑनर्स के बाद एक नये स्कूल के प्रधानाध्यापक हुए, फिर सब-रजिस्ट्रार। अपने ओजस्वी व्यक्तित्व और लोकप्रियता के कारण राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत हुए। 'रेणुका', 'हुंकार' के बाद वे काव्य-जगत् में छाते ही चले गये। विद्रोही कवि के रूप में ही नहीं 'उर्वशी' जैसे महाकाव्य के स्रजेता के रूप में भी उन्होंने 60 से अधिक कृतियों का सृजन किया है। 'संस्कृति के चार अध्याय' उनकी एक और महत्त्वपूर्ण पुस्त... See more
रामधारी सिंह 'दिनकर' - 23 सितम्बर, 1908 को मुँगेर के सिमरिया ग्राम में एक किसान परिवार में जन्म। बचपन से ही कठोर जीवन-संग्राम से गुज़रने के कारण उनके व्यक्तित्व का जुझारूपन अन्त तक बना रहा और वही उनकी रचनाओं में भी अभिव्यक्त हुआ। 1932 में बी.ए. ऑनर्स के बाद एक नये स्कूल के प्रधानाध्यापक हुए, फिर सब-रजिस्ट्रार। अपने ओजस्वी व्यक्तित्व और लोकप्रियता के कारण राज्यसभा के सदस्य भी मनोनीत हुए। 'रेणुका', 'हुंकार' के बाद वे काव्य-जगत् में छाते ही चले गये। विद्रोही कवि के रूप में ही नहीं 'उर्वशी' जैसे महाकाव्य के स्रजेता के रूप में भी उन्होंने 60 से अधिक कृतियों का सृजन किया है। 'संस्कृति के चार अध्याय' उनकी एक और महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। अपनी ओजस्विता एवं भावात्मक प्रकृति के कारण उनके काव्य को 'दहकते अंगारों पर इन्द्रधनुषों की क्रीड़ा' से ठीक ही उपमित किया गया। 'पद्मभूषण' से अलंकृत तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्री दिनकर 25 अप्रैल, 1974 को दिवंगत हुए।