पुस्तक परिचय
लेखक श्री जय शंकर शर्मा ने इस पुस्तक में अपने शोधपरक ज्ञान के आधार पर गागर में सागर भर दिया है। जिसने पहले कभी ज्योतिष का अध्ययन नहीं किया हो उसके लिए भी यह पुस्तक सहज प्रवेशिका कार्य करती है। इसको बार-बार पढ़कर कोई भी व्यक्ति कुण्डली विश्लेषण में पारगंत हो सकता है। इसमें कर्म एवं कर्म-फल तथा पुनर्जन्म एवं ज्योतिष से उनका संबंध् तार्किक आधर पर समझाया गया है।
इसके अतिरिक्त ग्रहों के गुण व कारकत्व, उनकी दृष्टियां, अवस्थाएं एवं युति आदि विषयों पर वैज्ञानिक तरीके से प्रकाश डाला है। विभिन्न राशियों एवं नक्षत्रों की स्थिति के प्रभाव को समुचित स्थान दिया है। इसी प्रकार अन्मान्य भावों से जीवन के हर ... See more
पुस्तक परिचय
लेखक श्री जय शंकर शर्मा ने इस पुस्तक में अपने शोधपरक ज्ञान के आधार पर गागर में सागर भर दिया है। जिसने पहले कभी ज्योतिष का अध्ययन नहीं किया हो उसके लिए भी यह पुस्तक सहज प्रवेशिका कार्य करती है। इसको बार-बार पढ़कर कोई भी व्यक्ति कुण्डली विश्लेषण में पारगंत हो सकता है। इसमें कर्म एवं कर्म-फल तथा पुनर्जन्म एवं ज्योतिष से उनका संबंध् तार्किक आधर पर समझाया गया है।
इसके अतिरिक्त ग्रहों के गुण व कारकत्व, उनकी दृष्टियां, अवस्थाएं एवं युति आदि विषयों पर वैज्ञानिक तरीके से प्रकाश डाला है। विभिन्न राशियों एवं नक्षत्रों की स्थिति के प्रभाव को समुचित स्थान दिया है। इसी प्रकार अन्मान्य भावों से जीवन के हर क्षेत्र और विषय के बारे में कैसे विश्लेषण करते हैं। यह भली भांति समझाया गया है। ज्योतिष में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न योगों पर विस्तार से चर्चा की गई है। महर्षि पराशर द्वारा प्रतिपादित षोडष वर्गों को भी इस पुस्तक में समाहित किया गया है। नए एवं पुराने सभी प्रकार के विद्यार्थियों को भरपूर सामग्री मिलेगी और वह भी सरल एवं सुगम्य भाषा में।