भूमिका: जब हम मन की बातें जिससे कहनी है, उससे कह नहीं पाते तो अपने मन के भावों को लिख देते है । उन्हें हम प्रेम पत्र भी कह सकते है और यहीं सारे जज़्बात उमड़ घुमड़ के पन्नो में रचित हो कविता बन जाते है कुछ ऐसे ही एहसासों से लबरेज मैने रची है तुम्हारी उपस्थिति अपने जीवन में जो कभी कहना था तुमसे पर कहा नही लेकिन आज दुनिया के सामने कविताओ के रूप में प्रस्तुत कर रहे है । जब तुमने थामी थी मेरी हथेली और फिर एक-एक उंगलियो का स्पर्श कर किए थे वादे... वो वादे आज भी संभाल रखे हैं... तर्जनी के पोरों पे आज भी एक एहसास की परत महसूस होती है... मध्यमा के स्पर्श पर मानों कुछ अनकही बातों की छाप की मोहर दिखने लगती है तुम्हारे ख़्यालों संग... फिर... See more
भूमिका: जब हम मन की बातें जिससे कहनी है, उससे कह नहीं पाते तो अपने मन के भावों को लिख देते है । उन्हें हम प्रेम पत्र भी कह सकते है और यहीं सारे जज़्बात उमड़ घुमड़ के पन्नो में रचित हो कविता बन जाते है कुछ ऐसे ही एहसासों से लबरेज मैने रची है तुम्हारी उपस्थिति अपने जीवन में जो कभी कहना था तुमसे पर कहा नही लेकिन आज दुनिया के सामने कविताओ के रूप में प्रस्तुत कर रहे है । जब तुमने थामी थी मेरी हथेली और फिर एक-एक उंगलियो का स्पर्श कर किए थे वादे... वो वादे आज भी संभाल रखे हैं... तर्जनी के पोरों पे आज भी एक एहसास की परत महसूस होती है... मध्यमा के स्पर्श पर मानों कुछ अनकही बातों की छाप की मोहर दिखने लगती है तुम्हारे ख़्यालों संग... फिर अनामिका पे बाँधे थे तुमने जो मोह के सूक्ष्म धागें उनमे लिपट कर रह गई है आज भी मेरी धड़कनों की आवाज और मैं भी तुम्हारे अनकहे निःशब्द वादों में... प्रवाहित कर दिया मेरी शिराओं में रक्त संग प्रेम का सप्तस्वरी राग और मन नाच उठता है मेरा तुम्हारी हर धड़कनों की लयबद्ध ताल पर अनेको नृत्य भंगिमाओं संग... कनिष्ठिका के संग तुम्हारी कनिष्ठिका का मिलना...मानो आज भी रोक रखा हो उन पलों को हमारे बीच... और अंत में कुछ रह गया तो वो था अंगुष्ठ से अंगुष्ठ का मिलन जो कभी न मिल सके तो रह गई एक प्रेम कहानी फिर से अधूरी। लेकिन जितना भी मिलन था ।