यह पुस्तक धर्म शास्त्रों के गुप्त से भी गुप्ततम रहस्यों के दर्शन कराती है कुछ गुप्त रहस्य ऐसे हैं जो भक्तों या शिष्यों अथवा अति श्रृद्धालुओं के लिए ही भगवान ने ग्रंथों में लिखे हैं अतः हमने सोचा कि आधुनिक युग में गृहस्थ आश्रम में लोगों को समय कम ही मिल पाता है तो क्यों न उनको हम वेदव्यास जी का प्रसाद दे दें । उन गृहस्थों को भी साधुवाद जिनके कारण यह अक्षयरुद्र स्वतंत्र होकर आध्यात्मिक कार्य संपादित कर पा रहा है। बिना गृहस्थों के साधु और संतों के कार्य संपादित नहीं हो सकते अतः इसी कारण साधु और संत समाज के आधे पुण्यों का अधिकार उन सभी गृहस्थ लोगों के पास जाता है जो साधुओं के आध्यात्मिक कार्य में तथा पोषण आदि में... See more
यह पुस्तक धर्म शास्त्रों के गुप्त से भी गुप्ततम रहस्यों के दर्शन कराती है कुछ गुप्त रहस्य ऐसे हैं जो भक्तों या शिष्यों अथवा अति श्रृद्धालुओं के लिए ही भगवान ने ग्रंथों में लिखे हैं अतः हमने सोचा कि आधुनिक युग में गृहस्थ आश्रम में लोगों को समय कम ही मिल पाता है तो क्यों न उनको हम वेदव्यास जी का प्रसाद दे दें । उन गृहस्थों को भी साधुवाद जिनके कारण यह अक्षयरुद्र स्वतंत्र होकर आध्यात्मिक कार्य संपादित कर पा रहा है। बिना गृहस्थों के साधु और संतों के कार्य संपादित नहीं हो सकते अतः इसी कारण साधु और संत समाज के आधे पुण्यों का अधिकार उन सभी गृहस्थ लोगों के पास जाता है जो साधुओं के आध्यात्मिक कार्य में तथा पोषण आदि में सहयोग देते हैं । भिक्षान्न से जो लोग साधुओं को तृप्त करते हैं वे मात्र एक बार के भोजन के तीन ग्रास अन्न से ही अपनी तीन पीढ़ियों को तृप्त कर डालते हैं तथा गृहस्थ ही ब्रह्मा जी के कार्य को आगे बढ़ाते हैं अन्यथा हम जैसे ब्रह्मचारियों या सभी साधुओं का व ब्रह्मनिष्ठों का जन्म कहाँ से होगा। पर गृहस्थ जीवन के लोगों को भी बहुत सी अनिवार्य बातें पता नहीं होती जिससे वे अपने जीवन का सदुपयोग नहीं कर पाते तथा औपचारिक रूप से जी जीकर यूँ ही मर जाते हैं जैसे कि उनको नित्य के हर नक्षत्र पर या हर तिथि पर इष्ट के लिए किस देवता को कृतज्ञता व्यक्त करना चाहिए और कब से वह त्रिकाल साधना या द्विकाल साधना आरंभ करे ताकि पूर्ण फल प्राप्त हो। तथा चौमासे में क्या करें कि बिना तप के भी कल्याण हो जाये आदि आदि बताना इस अक्षयरुद्र अंशभूतशिव का कर्तव्य बनता ही है।