9789390900244 : Rajyabhishekआचार्य जी का यह प्रसिद्ध उपन्यास राम द्वारा लंका पर चढ़ाई से प्रारंभ होता है और सीता के भू प्रवेश तक चलता है। इसकी एक-एक पंक्ति, एक-एक दृश्य ऐसा जीवंत है कि पाठक को बरबस लगता है कि वह स्वयं उसी युग में जी रहा है। - बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य चतुरसेन ने ५० वर्षों तक विविध विधाओं में निरंतर लेखन कार्य किया। वह एक लेखक और विचारक ही नहीं, बल्कि चिकित्सा शास्त्री भी थे ।
9789390900008 : Bodhi Vriksha Ki Chaaya Meinधम्मो मैगलमक्किट्ठ अहिन्सा सज्जमोतवो।
देवावितं नभ सति जस्स धम्मे सयामणो॥प्राकृतिक आधिदेविक देवों या नित्यमुक्त ईश्वर का पूज्य स्थान नहीं है।
एक सामान्य पुरुष भी अपना चरम विकास करके मनुष्य और देव दोनों का
पूज्य बन जा�... See more
9789390900244 : Rajyabhishekआचार्य जी का यह प्रसिद्ध उपन्यास राम द्वारा लंका पर चढ़ाई से प्रारंभ होता है और सीता के भू प्रवेश तक चलता है। इसकी एक-एक पंक्ति, एक-एक दृश्य ऐसा जीवंत है कि पाठक को बरबस लगता है कि वह स्वयं उसी युग में जी रहा है। - बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य चतुरसेन ने ५० वर्षों तक विविध विधाओं में निरंतर लेखन कार्य किया। वह एक लेखक और विचारक ही नहीं, बल्कि चिकित्सा शास्त्री भी थे ।
9789390900008 : Bodhi Vriksha Ki Chaaya Meinधम्मो मैगलमक्किट्ठ अहिन्सा सज्जमोतवो।
देवावितं नभ सति जस्स धम्मे सयामणो॥प्राकृतिक आधिदेविक देवों या नित्यमुक्त ईश्वर का पूज्य स्थान नहीं है।
एक सामान्य पुरुष भी अपना चरम विकास करके मनुष्य और देव दोनों का
पूज्य बन जाता है। (दश वैकालिक 1-1)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब धर्म के
उत्थान के लिए ईश्वर अपने रूप को रचता है।