काठ के पुतले कहानीकार-उपन्यासकार प्रज्ञा का पाँचवाँ कहानी-संग्रह है। इसमें नौ लम्बी कहानियाँ शामिल हैं। ये कहानियाँ हमारे समय का आईना भी हैं और उससे आगे की ओर निकलती राह भी। इन कहानियों में आपको नए समय की धड़कनें सुनाई देंगी। प्रज्ञा की कहानियाँ अपनी विषयगत विविधता के कारण अलग पहचान बनाती हैं। इस संग्रह में भी तकनीक, बाजार, प्रेम, श्रम, पूँजी, शिक्षा आदि क्षेत्रों में यथार्थ के छूट गए जरूरी कोनों से प्रज्ञा उस सच को अपने पाठकों के लिए निकाल लाई हैं जिसे देखकर भी अनेक बार अनदेखा कर दिया जाता है। ‘काठ के पुतले’ शहर, कस्बों और गाँवों के जीवन में आए तेज बदलावों के बीच घायल मनुष्यता की कहानियाँ जरूर हैं पर यह घायल म�... See more
काठ के पुतले कहानीकार-उपन्यासकार प्रज्ञा का पाँचवाँ कहानी-संग्रह है। इसमें नौ लम्बी कहानियाँ शामिल हैं। ये कहानियाँ हमारे समय का आईना भी हैं और उससे आगे की ओर निकलती राह भी। इन कहानियों में आपको नए समय की धड़कनें सुनाई देंगी। प्रज्ञा की कहानियाँ अपनी विषयगत विविधता के कारण अलग पहचान बनाती हैं। इस संग्रह में भी तकनीक, बाजार, प्रेम, श्रम, पूँजी, शिक्षा आदि क्षेत्रों में यथार्थ के छूट गए जरूरी कोनों से प्रज्ञा उस सच को अपने पाठकों के लिए निकाल लाई हैं जिसे देखकर भी अनेक बार अनदेखा कर दिया जाता है। ‘काठ के पुतले’ शहर, कस्बों और गाँवों के जीवन में आए तेज बदलावों के बीच घायल मनुष्यता की कहानियाँ जरूर हैं पर यह घायल मनुष्यता पूरी जिजीविषा के साथ संघर्षरत रहकर अपना अनूठा आसमान रचती है। यह कहानी-संग्रह यथार्थ की ऐसी तस्वीर सामने लाता है जिसमें बाजार और बदली हुई अर्थव्यवस्था मनुष्य को उसके सहज मानवीय संवेदनाओं से दूर करके एक ही साँचे में ढले हुए, एक ही काठ के कटे हुए पुतलों में तब्दील कर देना चाहती है। ऐसे पुतले जो प्रतिरोध न करें, अपने अधिकारों की माँग न करें। जो मनुष्य होते हुए भी खामोश रहें। जो अन्याय होते हुए भी आँख मूँद लें पर व्यवस्था को धता बताकर जब भी कोई व्यक्ति उसके मंसूबों के प्रतिपक्ष में खड़ा हो जाता है तब लड़ाई सिर्फ उसकी नहीं रह जाती। यह लड़ाई कहीं न कहीं पूरे मुनष्य जगत को बचाने की लड़ाई बन जाती है। जो विरोध का दामन थामकर कहती है—हम काठ के पुतले बनने से इंकार करते हैं। कथा कहने का प्रज्ञा का खास अन्दाज है। रहस्य और जिज्ञासा के ताने-बाने में किरदारों के जीवन के स्याह-धवल रंग और उनकी अपराजेय शक्ति ही इन कहानियों की आधारभूमि है। यथार्थ के सम-विषम स्वरों को सुनकर एक नया राग प्रज्ञा अपनी हर कहानी में साकार करने का प्रयत्न करती हैं। असम्भव में संभावना की तलाश उनकी कहानी-कला की खासियत है।