झारखंड अलग राज्य सभी का एक सपना था। एक खाका तैयार था कि कैसा होगा अपना झारखंड। लेकिन यह कैसे अस्तित्व में आया इसके लिए किस-किसने जान दी। कितने लोग, कहाँ-कहाँ मारे गए, कहाँ-कहाँ जुल्म झेले गए। इस पुस्तक को लिखने का मकसद था कि आनेवाली पीढ़ी झारखंड के लिए कुरबानी देनेवालों को जान सके, याद कर सके।
इस पुस्तक को मूलत: छह खंडों में बाँटा गया है। पहले खंड में पुलिस फायरिंग या पुलिस द्वारा मारे गए आंदोलनकारियों का जिक्र है। दूसरे खंड में उन घटनाओं को शामिल किया गया है, जहाँ आंदोलनकारी पुलिस की गोली से नहीं मरे, बल्कि महाजनों-माफिया या दबंगों ने उनकी हत्या कर दी। तीसरे खंड में उन गैर-आदिवासी आंदोलनकारियों को शामिल किया ग�... See more
झारखंड अलग राज्य सभी का एक सपना था। एक खाका तैयार था कि कैसा होगा अपना झारखंड। लेकिन यह कैसे अस्तित्व में आया इसके लिए किस-किसने जान दी। कितने लोग, कहाँ-कहाँ मारे गए, कहाँ-कहाँ जुल्म झेले गए। इस पुस्तक को लिखने का मकसद था कि आनेवाली पीढ़ी झारखंड के लिए कुरबानी देनेवालों को जान सके, याद कर सके।
इस पुस्तक को मूलत: छह खंडों में बाँटा गया है। पहले खंड में पुलिस फायरिंग या पुलिस द्वारा मारे गए आंदोलनकारियों का जिक्र है। दूसरे खंड में उन घटनाओं को शामिल किया गया है, जहाँ आंदोलनकारी पुलिस की गोली से नहीं मरे, बल्कि महाजनों-माफिया या दबंगों ने उनकी हत्या कर दी। तीसरे खंड में उन गैर-आदिवासी आंदोलनकारियों को शामिल किया गया है, जिनकी झारखंड आंदोलन में बहुत बड़ी भूमिका रही है, जिन्होंने आंदोलन को दिशा दी। चौथा खंड महिलाओं को समर्पित है। इसमें झारखंड आंदोलन में महिलाओं की भूमिका की चर्चा है।
पुस्तक के पाँचवें खंड में कुछ उन आंदोलनकारियों को भी शामिल किया गया है जिनकी मौत पुलिस या माफिया की गोली से नहीं हुई, बल्कि जिन्होंने इलाज के अभाव में दम तोड़ा, जिनकी स्वाभाविक या दुर्घटना में मौत हो गई, पर उनका आंदोलन में काफी योगदान था। इसमें उन आंदोलनकारियों को भी शामिल किया गया है, जिन्होंने आंदोलन में बहुत कुछ खोया है। कुछ वैसे आंदोलनकारियों को भी श़ामिल किया गया है, जो अभी जीवित हैं, पर जिन्होंने आंदोलन में हर प्रकार की भूमिका अदा की।