शिकार-साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक श्रीनिधि सिद्धान्तालंकार की जंगली पशुओं के जीवन और वातावरण के अध्ययन में बाल्यकाल से ही रुचि रही थी। श्रीनिधि श्वापद संकुल वनों में प्रवेश तो अन्य शिकारियों की तरह करते थे, परंतु आक्रांता या हिंसक बनकर नहीं, केवल जिज्ञासा एवं भीषणता के आनंद की भावना लेकर। वहां जाकर मचान बाँधते, जो उनके मध्याह्न विश्राम और रात्रि-शयन की आवश्यकता को पूर्ण करता था। सामान्य जन, जिन भयंकरताओं और भयों के कारण वनों में जाना भी नहीं करते, श्रीनिधि जी उन्हीं का आनंद लेने के लिए बार-बार उधर ही जाते थे। वहाँ उनकी जिन भयंकर हिंसक जंतुओं से मुठभेड़ हुई उन सबका मनोरंजक और ज्ञानवर्द्धक वर्णन है ‘मचान प्र �... See more
शिकार-साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक श्रीनिधि सिद्धान्तालंकार की जंगली पशुओं के जीवन और वातावरण के अध्ययन में बाल्यकाल से ही रुचि रही थी। श्रीनिधि श्वापद संकुल वनों में प्रवेश तो अन्य शिकारियों की तरह करते थे, परंतु आक्रांता या हिंसक बनकर नहीं, केवल जिज्ञासा एवं भीषणता के आनंद की भावना लेकर। वहां जाकर मचान बाँधते, जो उनके मध्याह्न विश्राम और रात्रि-शयन की आवश्यकता को पूर्ण करता था। सामान्य जन, जिन भयंकरताओं और भयों के कारण वनों में जाना भी नहीं करते, श्रीनिधि जी उन्हीं का आनंद लेने के लिए बार-बार उधर ही जाते थे। वहाँ उनकी जिन भयंकर हिंसक जंतुओं से मुठभेड़ हुई उन सबका मनोरंजक और ज्ञानवर्द्धक वर्णन है ‘मचान प्र उनंचास दिन’ ।