भारत में ज्ञान की एक समृद्ध परंपरा है और एक विरासत है जो कई सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रवर्तक लेखक स्वदेशी भारतीय लोग ही थे, यह बात अब पुरातत्त्व जाणकारी, आनुवंशिक जाणकारी, तथा कंकालों की पुनर्रचना करके प्राप्त जानकारी के आधार पर वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है। हड़प्पाई लोगों के बारे में प्राचीन डीएनए अनुसंधान की शुरुवात २०११-१२ में राखीगढ़ी में शुरू किया गया था जिसका अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। हरियाणा के हिसार जिले में स्थित राखीगढ़ी हडप्पाई 'सभ्यता का सबसे बड़ा शहर है। सरस्वती नदी की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपनदी के रूप में जाने जाने वाली दृषद्वती के समीप सरस्वती... See more
भारत में ज्ञान की एक समृद्ध परंपरा है और एक विरासत है जो कई सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रवर्तक लेखक स्वदेशी भारतीय लोग ही थे, यह बात अब पुरातत्त्व जाणकारी, आनुवंशिक जाणकारी, तथा कंकालों की पुनर्रचना करके प्राप्त जानकारी के आधार पर वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है। हड़प्पाई लोगों के बारे में प्राचीन डीएनए अनुसंधान की शुरुवात २०११-१२ में राखीगढ़ी में शुरू किया गया था जिसका अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। हरियाणा के हिसार जिले में स्थित राखीगढ़ी हडप्पाई 'सभ्यता का सबसे बड़ा शहर है। सरस्वती नदी की एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपनदी के रूप में जाने जाने वाली दृषद्वती के समीप सरस्वती बेसिन या कुंड के बीच में यह इलाका अवस्थित है। अधिकांश बुनियादी शिल्प और विज्ञान ७००० ईसा पूर्व के आसपास पेश किए गए थे। डेटा यह भी इंगित करता है कि लगभग ३००० ईसा पूर्व हड़प्पाई सभ्यता के दौरान क्रमिक विकास और बुनियादी प्रौद्योगिकियों और विज्ञानों ने परिपक्कता प्राप्त की थी। हड़प्पावासियों को भारतीय संस्कृति और परंपरा का संस्थापक माना जाता है। प्रा. डॉ. वसंत शिंदे, प्रसिद्ध पुरातत्वविद् सीएसआईआर भटनागर फेलो है और सीएसआईआर सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद में कार्यरत हैं। वे राखीगढी, परियोजनाके प्रमुख है। प्रा. डॉ. वसंत शिंदेजी ने इस पुस्तक के माध्यम से पुरातात्विक डेटा इसकी समकालीन प्रासंगिकता पर आधारित भारतीय ज्ञान प्रणाली की उत्पत्ति को शामिल किया है। यह पुस्तक छात्रों, पेशेवरों, नीति निर्माताओं और बड़े पैमाने पर जनता के लिए अत्यंत मूल्यवर्धक होगी।