काव्य संग्रह ‘नाराज़गी के बाद वाला प्यार’ भी ऐसे ही एक प्रेमी का है जिसने दुनियावी सफ़र के बीच अपने हृदय में प्रेम रूपी दैवीय गुण को संभाले रखा और अपनी कविताओं के माध्यम से हमेशा दोनों जहां के बीच एक अनवरत अनुभवों का आदान-प्रदान करने का जरिया बना। इस काव्य संग्रह की तासीर इश्क़ मिज़ाजी है। कवि की भूमिका एक महबूब की है जो अपनी महबूबा से लगातार कविताओं के माध्यम से गुफ़्तगू करता है। वह अपनी महबूबा को नादान अल्हड़ कहकर अपना प्यार भी जताता है और उसे उपमाओं से अलग रखकर उसकी मान मर्यादा का सम्मान भी करता है।