यह किताब असल मायनों में काॅलेज के एक बेपरवाह युवा की सोच एवं उसके हालातों को बयान करती हुई एक किताब है। जब इश्क में पडा हुआ एक युवा अपनी अल्पायु में ही सामाजिक ताने-बाने, सामाजिक मूल्यों एवं समाज की कुरीतियों को लेकर गम्भीर सोच रखने लगता है तो उसके अंतर्मन से निकलने वाले अल्फाजों को वह कागज पर उकेरने की कोशिश करता है। यह किताब भी उन्हीं कोशिशों का ही परिणाम है। यह वो किताब है, जो एक किताब बनने के लिए कभी लिखी ही नहीं गयी थी लेकिन जैसे जैसे वक्त का पहिया आगे बढता गया वैसे वैसे हालात बदलते गये और आज टूटी फूटी रचनाओं का ये संकलन एक किताब की शक्ल में आप सबके सामने है।