कल रात वो स्वप्न फिर आया, तुम्हारी शक्ल लेकर। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने आश्चर्य से तुम्हें छूने की कोशिश की। तुम्हारी ख़ुशबू मेरे हाथों पर रेंगने लगी। मैंने झट से उसे अपने पूरे शरीर पर मल लिया। मुझे ऐसी बचकानी हरकतें काफ़ी पसंद हैं। जब वापस आँख खुली तो मैं दिन भर ख़ुशी से नाच रहा था। ये शायद पहली बार हुआ होगा जब मैं असल में खुश था। पुराने जिये में कुछ नये का चित्र बहुत सुन्दर दिखाई देता है। अब जब उन सुन्दर चित्रों को लिखने की कोशिश कर रहा हूँ पर हर बार किसी न किसी चीज़ पर अटक जाता। यूँ तो मेरे पास इस कहानी के कई छोर हैं पर मैं इस असमंजस में हूँ कि किस छोर को पकड़ कर इस कहानी की शुरुआत करूँ। मेरे साथ ये पहले भी हो चुका है। ... See more
कल रात वो स्वप्न फिर आया, तुम्हारी शक्ल लेकर। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने आश्चर्य से तुम्हें छूने की कोशिश की। तुम्हारी ख़ुशबू मेरे हाथों पर रेंगने लगी। मैंने झट से उसे अपने पूरे शरीर पर मल लिया। मुझे ऐसी बचकानी हरकतें काफ़ी पसंद हैं। जब वापस आँख खुली तो मैं दिन भर ख़ुशी से नाच रहा था। ये शायद पहली बार हुआ होगा जब मैं असल में खुश था। पुराने जिये में कुछ नये का चित्र बहुत सुन्दर दिखाई देता है। अब जब उन सुन्दर चित्रों को लिखने की कोशिश कर रहा हूँ पर हर बार किसी न किसी चीज़ पर अटक जाता। यूँ तो मेरे पास इस कहानी के कई छोर हैं पर मैं इस असमंजस में हूँ कि किस छोर को पकड़ कर इस कहानी की शुरुआत करूँ। मेरे साथ ये पहले भी हो चुका है। मैं हर बार अपनी पसंद का कोई छोर चुन लेता और लिखना शुरू कर देता पर लिखने के कुछ ही पल बाद एक ऐसे मोड़ पर ख़ुद को खड़ा पता हूँ जिसके आगे जाना मुश्किल सा लगता है। मानो उस मोड़ के आगे रास्ते ही ख़त्म हो गए हों और सामने एक बड़ी दीवार खड़ी हो जिसे लाँघना मेरे बस की बात न हो। परन्तु एक लेखक होने के कारण मैं ऐसी किसी भी दीवार को अपने काल्पनिक पैरों से लाँघने की क्षमता रखता हूँ। मैं साधारण लेखक होने के साथ-साथ बहुत डरपोक भी हूँ | मैं अपने लिखे से कभी कभार डर जाता हूँ। मुझे डर इस बात का होता है कि कहीं मेरी कहानी किसी अनजान मोड़ पर रुक न जाये। इसलिए इस बार मैं अपने पसंद का छोर नहीं बल्कि अक्कड़-बक्कड़ करके कोई भी एक छोर चुन लूंगा जिसके अंत का मुझे पता न हो। - लेखक