क्या आप उर्दू शायरी के शौकीन हैं?
लेकिन क्या कभी-कभार शायरी पढ़ते-सुनते आप अटक जाते हैं? जब कोई शायर की बात अधूरी ही समझ में आये तो क्या मन में एक कसक नहीं उठती है कि काश पूरी समझ सकते?
यदि ऐसा है तो शायरी की बारीकियों को और बेहतर समझने में आपकी मदद करेगी यह किताब। इसमें सरल भाषा में उर्दू शायरी से जुड़ी वो सब ज़रूरी बातें हैं जिससे आप ग़ज़ल, शे’र, रुबाई, क़ता सभी को बेहतर समझ पायेंगे। शायरी का लुत्फ़ उठाने के लिए न केवल उर्दू ज़बान की समझ होनी चाहिए साथ ही उसमें प्रयोग होने वाले अनेक मिथकों, किस्से-कहानियों की जानकारी भी ज़रूरी है। चाहे वह हो लैला-मजनूं, शीरीं-फरहाद, हज़रत मूसा, आदम-हौवा के किस्से या फिर गुलिस्तां, गुल, बुलबुल,... See more
क्या आप उर्दू शायरी के शौकीन हैं?
लेकिन क्या कभी-कभार शायरी पढ़ते-सुनते आप अटक जाते हैं? जब कोई शायर की बात अधूरी ही समझ में आये तो क्या मन में एक कसक नहीं उठती है कि काश पूरी समझ सकते?
यदि ऐसा है तो शायरी की बारीकियों को और बेहतर समझने में आपकी मदद करेगी यह किताब। इसमें सरल भाषा में उर्दू शायरी से जुड़ी वो सब ज़रूरी बातें हैं जिससे आप ग़ज़ल, शे’र, रुबाई, क़ता सभी को बेहतर समझ पायेंगे। शायरी का लुत्फ़ उठाने के लिए न केवल उर्दू ज़बान की समझ होनी चाहिए साथ ही उसमें प्रयोग होने वाले अनेक मिथकों, किस्से-कहानियों की जानकारी भी ज़रूरी है। चाहे वह हो लैला-मजनूं, शीरीं-फरहाद, हज़रत मूसा, आदम-हौवा के किस्से या फिर गुलिस्तां, गुल, बुलबुल, आशियान, खिज़ां जैसे प्रतीक और रूपक जिन्हें जाने बिना शायरी की बात पूरी नहीं होती।
लेखक बाल कृष्ण उर्दू ज़बान और शायरी के विशेषज्ञ थे और साथ ही हिन्दी-अंग्रेज़ी साहित्यों के ज्ञानी भी। वे अपने समय में पंजाब यूनिवर्सिटी के पब्लिकेशन ब्यूरो के सचिव रहे।