कल्पना मनोरमा अपनी कहानियों में मानवीय ज़िंदगी के जिन और जैसे लैंडस्केप, परिदृश्यों को छूती और पकड़ती हैं, वे सब उनके जाने–पहचाने, आत्मीय इलाके हैं । इसलिए भी हम उनकी कहानियों में उनके ज़रूरी और महत्वपूर्ण पर ठहरने–ठिठकने को इतने क’रीब से महसूस कर पाते हैं । उनका अपने परिवेश और पात्रों से सघन और गहरा रिश्ता भी, उनकी कहानियों में आए भौतिक विवरणों की उपस्थिति से भी महसूस किया जा सकता है । उनकी कहानियों में इधर की स्त्रियों के जीवन की प्रताड़नाओं को नए सन्दर्भों में, नए आयामों के साथ देखा जा सकता है । इन कहानियों में आते हुए स्त्री पात्रों की चिंताओं, आकांक्षाओं और यातनाओं का स्वरूप, इधर का, समकालीनता का बोध लिया हु�... See more
कल्पना मनोरमा अपनी कहानियों में मानवीय ज़िंदगी के जिन और जैसे लैंडस्केप, परिदृश्यों को छूती और पकड़ती हैं, वे सब उनके जाने–पहचाने, आत्मीय इलाके हैं । इसलिए भी हम उनकी कहानियों में उनके ज़रूरी और महत्वपूर्ण पर ठहरने–ठिठकने को इतने क’रीब से महसूस कर पाते हैं । उनका अपने परिवेश और पात्रों से सघन और गहरा रिश्ता भी, उनकी कहानियों में आए भौतिक विवरणों की उपस्थिति से भी महसूस किया जा सकता है । उनकी कहानियों में इधर की स्त्रियों के जीवन की प्रताड़नाओं को नए सन्दर्भों में, नए आयामों के साथ देखा जा सकता है । इन कहानियों में आते हुए स्त्री पात्रों की चिंताओं, आकांक्षाओं और यातनाओं का स्वरूप, इधर का, समकालीनता का बोध लिया हुआ नजर आता है । वे अपनी कहानियों में स्त्री जीवन को लेकर कुछ नयी दृष्टियों, नयी अंतर्दृष्टियों को देने की कोशिश में जुटी हुई जान पड़ती हैं । उनकी एकदम हाल की कहानियों में कहानी की भाषा, संरचना और तकनीक के प्रति जागरूकता को कुछ और तीव्रता के साथ महसूस किया जा सकता है । यह बात उनके कथाकार के निरंतर होते हुए आत्मविकास की तरफ भी इशारा करती है और कथाकार के अपने आत्मसंघर्ष की तरफ भी । ---जयशंकर