भारत का लौह युग ... 900 ईसा पूर्व
गंगा की गोद में जन्मा वासु, अंग के उथल-पुथल से भरे साम्राज्य में पला-बढ़ा। उसके जीवन को जिस नियति ने आकार दिया, वह उसके साथ न्याय नहीं कर सकी - अपने-आप से उपेक्षित, अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित - उसे इच्छाओं और निराशाओं के रसातल में खोने के लिए ही बड़ा किया गया
अपने गुरु से शापित, एकमात्र प्रिया के हाथों हृदय पर मिली चोट और सूत पुत्र होने कारण समाज से मिला निष्कासन। वह अपने एकमात्र कवच - आशा के बल पर एक अविस्मरणीय यात्रा पर निकल पड़ा है। अकेला। यह उत्तरजीविता बनाए रखने और सभी कष्टों के बीच भी साहस का दामन थामे रखने वाले वासु की कथा है। और अंततः अपने समय के महानतम योद्धाओं में अपना नाम दर्... See more
भारत का लौह युग ... 900 ईसा पूर्व
गंगा की गोद में जन्मा वासु, अंग के उथल-पुथल से भरे साम्राज्य में पला-बढ़ा। उसके जीवन को जिस नियति ने आकार दिया, वह उसके साथ न्याय नहीं कर सकी - अपने-आप से उपेक्षित, अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित - उसे इच्छाओं और निराशाओं के रसातल में खोने के लिए ही बड़ा किया गया
अपने गुरु से शापित, एकमात्र प्रिया के हाथों हृदय पर मिली चोट और सूत पुत्र होने कारण समाज से मिला निष्कासन। वह अपने एकमात्र कवच - आशा के बल पर एक अविस्मरणीय यात्रा पर निकल पड़ा है। अकेला। यह उत्तरजीविता बनाए रखने और सभी कष्टों के बीच भी साहस का दामन थामे रखने वाले वासु की कथा है। और अंततः अपने समय के महानतम योद्धाओं में अपना नाम दर्ज करवाने वाले की कथा है - कर्ण।
वह अपने परम शत्रु से युद्धरत है - जो घृष्ट, निकृष्ट और महाबलशाली जरासंध है। कर्ण जानता है कि उस पद के लिए वही सही उत्तराधिकारी है।
एक सूतपुत्र से लोगों का नेता बनने तक, - यह विश्वासघात, प्रेम और कीर्ति की गाथा है यह अंगराज कर्ण की गाथा है।