लेखक के रूप में डॉ॰ प्रशांत चौबे समाज के ताने वाने की बारीकियों को बखूबी लिखने वाले लेखक हैं। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के रूप में लंबे समय तक फील्ड में काम करने के कारण इनकी कहानियों में सामाजिक पैनापन तथा सामाजिक विद्रूपताओ का वास्तविक विश्लेषण दिखाई देता है। राधिका रूमी मे मुख्य रूप से महिला किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती हुई कहानियाँ है। यहां हाइमोनोप्लास्टी जैसी वर्तमान मर्यादातिरेक संकल्पनाओं पर प्रहार दर्शाया गया है वहीं कुंठित सामाजिक सम्बन्धों और कोरोना काल की वास्तविकताओं का वर्णन भी कथानक के माहौल में अत्यधिक रोचक तरीके से किया गया है। मेडिकल छात्राओं के साथ पास करने के नाम पर हुए दैहिक शोषण के �... See more
लेखक के रूप में डॉ॰ प्रशांत चौबे समाज के ताने वाने की बारीकियों को बखूबी लिखने वाले लेखक हैं। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के रूप में लंबे समय तक फील्ड में काम करने के कारण इनकी कहानियों में सामाजिक पैनापन तथा सामाजिक विद्रूपताओ का वास्तविक विश्लेषण दिखाई देता है। राधिका रूमी मे मुख्य रूप से महिला किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती हुई कहानियाँ है। यहां हाइमोनोप्लास्टी जैसी वर्तमान मर्यादातिरेक संकल्पनाओं पर प्रहार दर्शाया गया है वहीं कुंठित सामाजिक सम्बन्धों और कोरोना काल की वास्तविकताओं का वर्णन भी कथानक के माहौल में अत्यधिक रोचक तरीके से किया गया है। मेडिकल छात्राओं के साथ पास करने के नाम पर हुए दैहिक शोषण के स्कैम का चित्रण हो या एकाकी महिला की दोहरी कुंठा का आख्यान संकलन की कहानियों को पढ़ते हुए बस पढते जाने का मन करता है। भाषा की सहजता रोचकता और लय तरंगों की तरह लगातार पाठक को खींच के रखती है। एक पुलिस अधिकारी का अनुभव जब साहित्य के गोल्ड मेडलिस्ट विद्यार्थी से मिलता है तो निश्चित ही समाज और साहित्य के सरोकारों के आयाम स्थापित हो जाते हैं। इनके सटीक अवलोकन विश्लेषण और यात्रा के लिए यदि आप राधिक रूमी को पढ़ेंगे तो निश्चित ही अपने निर्णय की सटीकता पर हर्षित ही होंगे।