इस पुस्तक के बारे में स्वयं लेखक लिखते हैं कि सोचा तो यही था कि आत्मकथा लिखने में क्या है। जो घटित हुआ, वही तो लिखना है; किंतु लिखते हुए ज्ञात हुआ कि आत्मकथा में समस्या लेखन की नहीं, चयन की है। क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है। अपना सत्य लिखना है, किंतु दूसरों के कपट का उद्घाटन नहीं करना है; क्योंकि उसमें स्वयं को महान् बनाने की चेष्टा देखी जा सकती है वे घटनाएँ जो अपने लोगों को आहत करती हैं और वे घटनाएँ, जो लेखक की आत्म-भर्त्सना के रूप में उसे गौरवान्वित करती हैं। लेखक उन गुणों से भी स्वयं को अलंकृत कर सकता है, जो उसमें हैं ही नहीं और वह अपने दोषों को इस प्रकार भी प्रस्तुत कर सकता है कि वे गुण लगें। नंगा सत्य बोलना ब�... See more
इस पुस्तक के बारे में स्वयं लेखक लिखते हैं कि सोचा तो यही था कि आत्मकथा लिखने में क्या है। जो घटित हुआ, वही तो लिखना है; किंतु लिखते हुए ज्ञात हुआ कि आत्मकथा में समस्या लेखन की नहीं, चयन की है। क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना है। अपना सत्य लिखना है, किंतु दूसरों के कपट का उद्घाटन नहीं करना है; क्योंकि उसमें स्वयं को महान् बनाने की चेष्टा देखी जा सकती है वे घटनाएँ जो अपने लोगों को आहत करती हैं और वे घटनाएँ, जो लेखक की आत्म-भर्त्सना के रूप में उसे गौरवान्वित करती हैं। लेखक उन गुणों से भी स्वयं को अलंकृत कर सकता है, जो उसमें हैं ही नहीं और वह अपने दोषों को इस प्रकार भी प्रस्तुत कर सकता है कि वे गुण लगें। नंगा सत्य बोलना बहुत कठिन होता है; उसकी लपेट में लेखक स्वयं तो आता ही है, वे लोग भी आ जाते हैं, जिनके विषय में सत्य बोलने का अधिकार लेखक को नहीं है। इसलिए मैंने सपाट सत्य भी लिखा है और जहाँ आवश्यकता पड़ी है, वहाँ सृजनात्मकता का झीना पर्दा भी डाल दिया है। प्रयत्न यही है कि मेरा सत्य तो पाठकों के सामने आए, किंतु उसकी लपेट में अन्य लोग न आएँ।