यह किताब भारतीय इतिहास के उन पंद्रह भूले-बिसरे और गुमनाम बहादुर स्त्री-पुरुषों के कृत्यों, कालखंड और उनके योगदानों पर प्रकाश डालती है जिन्होंने न केवल रणभूमि में हथियार उठाए बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी आशा की किरण जलाए रखी।
उन्होंने धर्म और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आक्रांताओं से बहादुरी पूर्वक लोहा लिया।
मणिपुर के राजर्षि भाग्यचंद्र जय सिंह, अहमदनगर की चांद बीबी, असम के लचित बरफुकन, अवध की बेगम हजरत महल, उल्लाल की रानी अब्बक्का चौटा, त्रावणकोर के मार्तंड वर्मा, वारंगल की रानी रुद्रम्मा देवी, गुजरात की रानी नायकी देवी और बंदा सिंह बदादुर कुछ ऐसे ही योद्धा हैं जो अपने देश की संस्कृति और परंपरा �... See more
यह किताब भारतीय इतिहास के उन पंद्रह भूले-बिसरे और गुमनाम बहादुर स्त्री-पुरुषों के कृत्यों, कालखंड और उनके योगदानों पर प्रकाश डालती है जिन्होंने न केवल रणभूमि में हथियार उठाए बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी आशा की किरण जलाए रखी।
उन्होंने धर्म और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आक्रांताओं से बहादुरी पूर्वक लोहा लिया।
मणिपुर के राजर्षि भाग्यचंद्र जय सिंह, अहमदनगर की चांद बीबी, असम के लचित बरफुकन, अवध की बेगम हजरत महल, उल्लाल की रानी अब्बक्का चौटा, त्रावणकोर के मार्तंड वर्मा, वारंगल की रानी रुद्रम्मा देवी, गुजरात की रानी नायकी देवी और बंदा सिंह बदादुर कुछ ऐसे ही योद्धा हैं जो अपने देश की संस्कृति और परंपरा के लिए लड़े थे।