शास्त्रीय संगीत की दृष्टि से सन् 1943 से व्यक्तिगत रूप से संगीत प्रशिक्षण, संगीत गोष्ठियों, संगीत सम्मेलनों का आयोजन करते हुए सन् 1998 तक पं. राम नारायण मणि त्रिपाठी ने गोरखपुर एवं पूर्वांचल में शास्त्रीय संगीत की मजबूत आधारशिला रखी। गोरखपुर में 1955 में जब विश्वविद्यालय खोलने की सम्भावना बनीं, तो आपने संस्थापक कार्यकारिणी सदस्यों से आग्रह करके संगीत विभाग की स्थापना कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फलतः सन् 1957-58 में ललित कला एवं संगीत विभाग की स्थापना हुई और वह भी विभाग में शिक्षक नियुक्त हुए। 'सरसरंग' उपनाम से प्राथमिक से स्नातकोत्तर स्तर तक के अधिकांश रागों से स्वस्थ साहित्य, राग- धर्मयुक्त बंदिशों की रचना क... See more
शास्त्रीय संगीत की दृष्टि से सन् 1943 से व्यक्तिगत रूप से संगीत प्रशिक्षण, संगीत गोष्ठियों, संगीत सम्मेलनों का आयोजन करते हुए सन् 1998 तक पं. राम नारायण मणि त्रिपाठी ने गोरखपुर एवं पूर्वांचल में शास्त्रीय संगीत की मजबूत आधारशिला रखी। गोरखपुर में 1955 में जब विश्वविद्यालय खोलने की सम्भावना बनीं, तो आपने संस्थापक कार्यकारिणी सदस्यों से आग्रह करके संगीत विभाग की स्थापना कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फलतः सन् 1957-58 में ललित कला एवं संगीत विभाग की स्थापना हुई और वह भी विभाग में शिक्षक नियुक्त हुए। 'सरसरंग' उपनाम से प्राथमिक से स्नातकोत्तर स्तर तक के अधिकांश रागों से स्वस्थ साहित्य, राग- धर्मयुक्त बंदिशों की रचना की, जिनमें स्वरमालिका, लक्षणगीत, ख्याल, ध्रुपद, धमार, तराना, चतुरंग आदि गीत प्रकार समाहित हैं।