ललित निबंध-विधा को प्रतिष्ठित करने में यदि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की महनीय भूमिका रही है तो इसे शीर्षस्थता प्रदान करने में गद्य-गंधर्व कुबेरनाथ राय की। प्रथम कृति प्रिया नीलकंठी से प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले ललित निबंधकार कुबेरनाथ राय की छठी पुस्तक है पर्ण-मुकुट । इसके अठारह निबंध मानो अठारह पर्व हैं उस वृहत्तर एवं समन्वित भारत के जिसकी प्रस्तावना और व्याख्या पूर्व प्रकाशित निषाद बांसुरी संग्रह में विशद रूप से कई आयामों में उन्होंने की है। पर्ण-मुकुट के ये निबंध भारतीयता की संयुक्त अवधारणा (आर्य-निषाद-द्रविड़-किरात से समन्वित) को विस्तृत एवं पुष्ट करते हैं नृतत्व शास्त्र, भाषा-विज्ञान तथा प्रा�... See more
ललित निबंध-विधा को प्रतिष्ठित करने में यदि आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की महनीय भूमिका रही है तो इसे शीर्षस्थता प्रदान करने में गद्य-गंधर्व कुबेरनाथ राय की। प्रथम कृति प्रिया नीलकंठी से प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले ललित निबंधकार कुबेरनाथ राय की छठी पुस्तक है पर्ण-मुकुट । इसके अठारह निबंध मानो अठारह पर्व हैं उस वृहत्तर एवं समन्वित भारत के जिसकी प्रस्तावना और व्याख्या पूर्व प्रकाशित निषाद बांसुरी संग्रह में विशद रूप से कई आयामों में उन्होंने की है। पर्ण-मुकुट के ये निबंध भारतीयता की संयुक्त अवधारणा (आर्य-निषाद-द्रविड़-किरात से समन्वित) को विस्तृत एवं पुष्ट करते हैं नृतत्व शास्त्र, भाषा-विज्ञान तथा प्रागैतिहासिक अवशेषों के साक्ष्य से, वैदिक और लोक-साहित्य के अनुशीलन से। मनुष्य धरती और ईश्वर का त्रिक यहॉं भी उपस्थित है। शिशिर रात्रि में व्याप्त एक अखंड अविराम अतींद्रिय संगीत के अनुभव-स्पंदन का और परमा प्रकृति के लीला-भाव तथा उसकी छह ऋतुओं के ललित लास्य नृत्य का अंकन भी है यहां। हेमंत से प्रारंभ हेमंत में पर्यवसित इन निबंधों में लेखक ने ज्ञान-विमर्श, सभ्यता-विमर्श करते हुए साहित्य के रसबोध को जीवंत और पुष्ट किया है। इतिहास-बोध की अपेक्षा सांस्कृतिक-बोध को प्रधानता दी गई है इन लेखों में। इस प्रक्रिया में उनकी प्रज्ञा कई तथ्य-सत्य का अनुसंधान भी करती है, जैसे‘चिन्मय भारत का आदि-बिंदु वेद नहीं लोकायत धर्म है’, ‘आर्येतर लोकायत संस्कृति ने वैदिक संस्कृति को धीर, भद्र, सौम्य तथा भारतीय बनाया है’, ‘लोक-संस्कृति की दृष्टि से ‘अहीर’ अब भी एक जीवित जाति है’ आदि-आदि। कुबेरनाथ राय की अंतःवासिनी प्रतिभा द्वारा रचा देसी पत्तों का यह पर्ण-मुकुट साहित्य रसज्ञों को एक सौगात है।