यह ग्रन्थ आदिवासी कविता को प्रस्तुत करने वाला हिन्दी में पहला गम्भीर और आत्मीय प्रयास है। चिन्तन के अंतर्गत जहां पुनीता जैन ने आदिवासी जीवन-दर्शन और विचार की आधारभूमि को कायदे से समझा है, वहीं हिन्दी में आदिवासी लेखन की भूमिका व परिदृश्य को भी करीने से उजागर किया है। वह जहां मध्य प्रदेश के पुरखा साहित्य पर दृष्टिपात करती हैं, वहीं सबाल्टर्न इतिहास दृष्टि और आदिवासी साहित्य पर भी चर्चा करती हैं। यहां आदिवासी कविता को उसकी परम्परा, दृष्टि और आदिवासी संस्कार के स्तर पर देखने-समझने के साथ ही यह चेष्टा भी नजर आती है कि पड़ोस में मौजूद आदिवासी को उसके मूल स्वरूप में स्वीकार करते हुए उसकी अभिव्यक्ति की समीचीन सन्... See more
यह ग्रन्थ आदिवासी कविता को प्रस्तुत करने वाला हिन्दी में पहला गम्भीर और आत्मीय प्रयास है। चिन्तन के अंतर्गत जहां पुनीता जैन ने आदिवासी जीवन-दर्शन और विचार की आधारभूमि को कायदे से समझा है, वहीं हिन्दी में आदिवासी लेखन की भूमिका व परिदृश्य को भी करीने से उजागर किया है। वह जहां मध्य प्रदेश के पुरखा साहित्य पर दृष्टिपात करती हैं, वहीं सबाल्टर्न इतिहास दृष्टि और आदिवासी साहित्य पर भी चर्चा करती हैं। यहां आदिवासी कविता को उसकी परम्परा, दृष्टि और आदिवासी संस्कार के स्तर पर देखने-समझने के साथ ही यह चेष्टा भी नजर आती है कि पड़ोस में मौजूद आदिवासी को उसके मूल स्वरूप में स्वीकार करते हुए उसकी अभिव्यक्ति की समीचीन सन्दर्भों में परख की जाए। इस क्रम में पुनीता जैन सृजन क्षेत्र से सुशीला सामद, दुलाय चन्द्र मुंडा, रामदयाल मुंडा, रोज केरकट्टा, ग्रेस कुजूर, निर्मला पुतुल, महादेव टोप्पो, वंदना टेटे, सरिता बड़ाइक, फ्रांसिस्का कुजूर, अनुज लुगुन, जसिंता केरकेट्टा, चन्द्रमोहन किस्कू, आदित्य कुमार मांडी, हरिराम मीणा, वाहरू सोनवणे, भगवान गव्हाणे, अन्ना माधुरी तिर्की, विश्वासी एक्का, पूनम वासम, जमुना बीनी तादर, तारो सिंदिक सरीखे रचनाकारों पर गहरी संलग्नता से विचार करती हैं। इस विचार-क्रम में आलोचक पुनीता जैन ने अनिवार्य शोधपरक दृष्टि से काम लिया है और रचना आधारित अध्ययन कर एक प्रामाणिक कार्य किया है। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ पठन-पाठन में लगे प्रत्येक व्यक्ति के लिए तो महत्त्वपूर्ण है ही, आदिवासी साहित्येतिहास लिखने वालों के लिए भी एक बड़ा सहयोगी ग्रन्थ साबित होगा।